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________________ 16 ण ण . ५६] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० १,९; २, १-९,३, १-१ ॥पत्ता॥ जगडन्तु वलु मारुइ हिण्डइ जहिँ जे जहि । सङ्गाम-महि रुण्ड-णिरन्तर तहिँ जे तहिँ ॥९ [२] जं जिणेंवि ण सकिउ वर-भडेहिँ वेढाविउ मारुइ गय-घडेहिँ ॥ १ गिरि-सिहर-गहिर-कुम्भत्थलेहि अणवरय-गलिय-गण्डत्थलेहिँ ॥२ छप्पय-झङ्कार-मणोहरेहि घण्टा-टङ्कार-भयङ्करहिँ ॥ ३ । तण्डविय-कण्ण-उडुअ-करेहिँ मुक्ककासेहिँ मय-णिब्भरेहिँ ॥४ जं वेढिउ रण-मुहें पवण-जाउ तं धाइउं कइधय-भड-णिहाउ ॥ ५ 10 जहिँ जम्वउ णीलु सुसेणु हंसु गउ गवउ गवक्खु विसुद्ध-वंसु ॥ ६ सन्तासु विराहिउ सूरजोत्ति पीईङ्कर किङ्करु लच्छिभुत्ति ॥ ७ चन्दप्पहु चन्दमरीचि रम्भु सद्लु विउलु कुलपवणथम्भु ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ आऍहिँ भडेंहिँ मारुइ उवेड्डावियउ। णं णिय-गुणेंहिँ जीउ व भव मेल्लावियउ ॥ ९ [३] रण-रसिऍहिँ वेहाविद्धएहिँ पेल्लिउ पडिवक्खु कइद्धएहिँ ॥१ णासइ विहडप्फडु गलिय-खग्गु चूरन्तु परोप्परु चलण-मग्गु ॥२ भजन्तउ पेक्खेवि णियय-सेण्णु रावणु जयकारेंवि कुम्भयण्णु ॥ ३ 20 धाइउ भय-भीसणु भीम-काउणं राम-वलहाँ खय-कालु आउ॥४ परिसक्कइ रण-भूमिहें ण माइ गिरि मन्दरु थाणहाँ चलिउ णाई ॥५ जउ जउ जें स-मच्छरु देइ दिहि तउ तउ में पडइ णं पलय-विद्धिः ॥६ को वि वाएं कों वि भिउडिऍ पण? कों वि ठिउ अवठम् वि धरणि-व? ॥ ७ को वि कहँ वि कडच्छऍ णिरु 'णिलुकु को वि दूरहों जे पाहिँ विमुक्कु ॥ ८ ॥ घत्ता॥ सुग्गीव-वलें गरुअउ हुअउ हलफलउ । णं अग्गहरें हत्थि पइट्टउ राउलउ ॥ ९ 7 P हिहे. . 2. 1 A कण्णउ. 2 PS उद्धं. 3 A रणउहे. 4 PS आउ कइद्धय. 5 Ps पीयंकरू. 6 Ps चंदु.7 P मलहं, S मलह. 3. 1 PS A णाइ. 2 A °विहि. 3 P S 'वीट्ठ. 4 A कहो. 5 P s जरु, A निरु. 6 wanting in Ps. 7 PS मुक्कु. 8 P S हल्लोहलउ; P marginally gives हलप्फलड. 9 अंगरे. [३] १ लिहकिनः (१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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