SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० १२,९,१३, १-९,१४,१-९ ॥घत्ता ॥ जण-णयणाणन्द-जणेरउ धउ हणुवन्तहों केरउ । विन्धेप्पिणु महियलें पाडिउ णह-सिरि-हारु व तोडिउ ॥९ [१३] • जं छिण्णु महद्धउ दुद्धरेण तं पवण-सुएण धणुद्धरेण ॥ १ दो दीहर वर-णाराय मुक्क रिउ-रहवर-वीढासण्ण दुक्क ॥२ एकण कवउ एक्केण चाउ विद्धंसिउ णाइँ जिणेण पाउ ॥ ३ सण्णाहु अण्णु परिहेवि भडेण धणुहरु वि' लेवि विहडप्फडेण ॥ ४ हणुवन्तु विद्धु दीहर-सरेहिँ णं कोमल-दल-इन्दीवरेहिँ ॥ ५ "हणुवेण वि मेल्लिउ अद्धयन्दु । अइ-दीहरु णाई समास-दण्डु ॥ ६ उज्जोत्तिय तेण समत्थ सीह मत्तभ-कुम्भ-मुत्ताहलीह ॥ ७ । जगडन्त पहिण्डिय वलु असेसु ओहाइय हय-गय-णरवस्सु ॥८ ॥ पत्ता॥ उद्धृय-लङ्गल-पईहॅहिँ वल्लु खजन्तउ सीहिँ। " णासइ भय-वेविर-गत्तउ अवरोप्पर लोट्टन्तउ ॥९ [१४] . घलु सयलु वि किउ भय-विहलु जाम्व हणुवन्तु दसौणणे भिडिउ ताम ॥ १ पञ्चाणण-सन्दणु पमय-चिन्धु थिउ उड्डेवि रण-भर-धुरहें खन्धु ॥२ सो जुज्झमाणु जं दिहु तेण सण्णाहु लइउ लङ्काहिवेण ॥ ३ "रंण-रहसुच्छलियाँ उरें ण माइ । सुहि-सङ्गामें गरुअ-सणेहु णाई ॥ ४ पुणु दुक्खु दुक्खु आइडु अङ्गे सीसक्कु करेप्पिणु उत्तमङ्गे ॥ ५ आयामिउ धणुहरु लइउ वाणु पारद्धु समरु हणु- समाणु ॥ ६. तहिँ तेहऍ काले धणुद्धरेण रहु अन्तरे दिण्णु महोअरेण ॥ ७ हक्कारिउ मारुइ 'थाहि थाहि सवडम्मुहु रहवरु वाहि वाहि' ॥८ ॥ घत्त। ॥ तं सुणेवि महोअरु जेत्तहें रहवर वाहिउ तेत्तहें । उत्थरिय वे वि समरङ्गणे णं खय-मेह णहङ्गणे ॥९ 5 PS हणुवंतउ. 13. 1 A वलेवि. 2 P S जगु. 3 P S उद्धृय, A उद्धर्णत. 4 P S °णंगूल°. 5 s बहु. 14. 1 P A दसाणणि. 2 A रणे. 3 PS °च्छलियउ. 4 A °संभवे. 5 PS गुरु वि. 6 PS A इ. 7 P सुणिवि, s णिसुणि, A निसुणेवि. [१३] १ हस्ती. २ मुक्ताफलेच्छा, [१४] १ वानर. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy