________________
०५,१-१२,६,१-९]
उज्झाकण्ड-तेवीसमो संधि । १७.
[५] ता एत्थन्तरे असुर-विमदें धीरिय णिय-जणेरि वलहवें ॥१ "धीरिय होहि माएँ किं रोवहि लुहि लोयण अप्पाणु म सोयहि ॥ २ जिह रविकिरणहिँ ससि ण पहावइ तिह मइँ होन्ते भरहु णं भावइ ॥ ३ तें कजें वण-वासें.वसेवउ तायहाँ तणउ सच्चु पालेवउ ॥४ दाहिण-'देसे करेविणु थत्ति - तुम्हहँ पासें एइ सोमित्ति' ॥ ५ एम भणेप्पिणु चलिउ तुरन्तउ सयलु वि परियणु आउच्छन्तउ ॥ ६ धवल-कसण-णीलुप्पल-सामहि घरु मुच्चन्तउ लक्खण-रामहि ॥ ७ सोह ण देइ ण चित्तहाँ भावइ गहु णिच्चन्दाइचउ णावइ ॥८ णं किय-उद्ध-हत्थु धाहावइ वलहों कलत्त-हाणि णं दावइ ॥९ भरह-णारिन्दों णं जाणावइ 'हरि-वल जन्त णिवारहि णरवई' ॥१० पुणु पाआर-भुयउ पसरेप्पिणु णाइँ णिवारइ आलिङ्गेप्पिणु ॥ ११
www
॥ घत्ता
॥
चाव-सिलीमुह-हत्थ तहाँ मन्दिरहों रुयन्तहों
वे वि समुण्णय-माणा। णाइँ विणिग्गय पाणा ॥ १२
॥
तो एत्यन्तरे णयणाणन्दें संचल्लन्तें राहवचन्दें ॥१ सीयाएविहे वयणु णिहालिउ . णं चित्तेण चित्तु संचालिउ ॥२ णिय-मन्दिरहों विणिग्गय जाणइ णं हिमवन्तहों गङ्ग महा-णइ ॥३ णं छन्दहाँ णिग्गय गायत्ती णं सद्दहों णीसरिय विहत्ती ॥४ णाइँ कित्ति सप्पुरिस-विमुक्की णाइँ रम्भ णिय-थाणहाँ चुक्की ।। ५ सुललिय-चलण-जुयल-मल्हन्ती । णं गय-घड भड-थड विहडन्ती ॥६ णेउर-हार-डोर-गुप्पन्ती
वहु-तम्बोल-पड़े खुप्पन्ती ॥७ हेट्ठा-मुह कम-कमलु णियच्छवि अवराइय-सुमित्ति आउच्छेवि ॥८
॥ घत्ता॥ णिग्गय सीयाएवि सियं हरन्ति णिय-भवणहाँ।
रामहों दुक्खुप्पत्ति असणि णाइँ दहवयणहाँ ॥ ९ 5.1 A सेरी. 2 P S A रोवहिं. 3 A पावइ. 4 P °देस, S A °देसि. 5 P S थति, A थत्ते. 6 P S A पासि. 7 PS सोमित्ते, A सौमित्ते. 85 वजंत. ___6..1 P सुपुरिसे, S सुपुरिसहो. 25 मुक्की. 3 P S तंवोलु. 4 SA मुह. 5 A सिरि.
[५] १ स्वस्था भन. २ न शोभते. ३ नभः. ४ धनुष स(श)राः हस्ती. .[६] १ गावित्री. २ विभक्तिः.
स०प०च.३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org