________________
क० ९, ७-९, १०, १-९, ११, १-८] जं णिय-जणणहाँ आणा-विहेउ किं पुत्तें पुणु पयंपूरणेण
उज्झाकण्डं-बावीसमो संधि [१३ जं करइ विवक्खहाँ पाण-छेउ ॥७ गुण-हीणें हियय-विसूरणेण ॥ ८
॥ घत्ता
॥
लक्खणु ण वि हर्णइ तवु भावों सच्च पर्यासहों भुञ्जउ भरहु महि हउँ जामि ताय वण-वासहों' ॥९ ।
[१०] हक्कारिउ भरहु णरेसरेण पुणु वुच्चइ णेह-महाभरेण ॥१ 'तुउ छत्तइँ तउ वइसणउ रज्जु साहेवउ मइँ अप्पणउ कजु' ॥२ तं वयणु सुणेवि दुम्मिय-मणेण धिकारिउ केकय-णन्दणेण ॥३ 'तुहुँ ताय धिगत्थु धिगत्थु रज्जु मायरि धिगत्थु सिरे पडउ वज्जु ॥ ४ ॥ णउ जाणहूँ महिलहँ को सहाउ जोवण-मएण ण गणन्ति पाउ ॥ ५ णउ वुज्झहि तुहु मि महा-मयन्धु किं रामु मुऍवि महु पट्ट-वन्धु ॥६ सप्पुरिस वि चञ्चल-चित्त होन्ति मणे जुत्ताजुत्तु ण चिन्तवन्ति ॥ ७ माणिकु मुऍवि को लेइ कचु कामन्धों किर कहिँ तणउ सञ्च ॥ ८
॥ घत्ता॥ अच्छहु पुणु वि घरे सत्तुहणु रामु हउँ लक्खणु। अलिउ म होहि तुहुँ महि भुजें भडारा अप्पुणु' ॥९
[११] सुय-चयण-विरमें दससन्दणेण ___वुच्चइ अणरण्णहों णन्दणेण ॥१ 'केकयहें रजु रामहों पवासु पञ्चज मज्झु एउ जगें पगासु ॥ २ ॥ तुहुँ पाले घरासउ परम-रम्मु । णउ आयहाँ पासिउ को वि धम्मु ॥ ३ । दिजइ जइवरहुँ महप्पाणु सुअ-भेसंह-अभयाहार-दाणु ॥४ रक्खिज्जइ सील कुसील-णासु किजइ जिण-पुज्ज महोववासु ॥५ जिण-चन्दण वारापेक्ख-करणु सल्लेहण-कालु समाहि-मरणु ॥ ६ एहु सबहुँ धम्महुँ परम-धम्मु जो पालइ तहाँ सुर-मणुय-जम्मु' ॥ ७ 25 तं वयणु सुणेवि सइत्तणेण वुच्चइ सुहमइ-दोहित्तएंण ॥ ८ 8 s के. 9 A धरइ. 10 A पगासहो. ____10. 1 A हकारिवि. 25 साहेवउ. 3 A अप्पणउं. 4 A जाणहं. 5 PS महिलहुं. 6s पहु. 7 A चिंतर्विति. 8 PS माणिक. 9 A अच्छहुं. 10 P अप्पणु. ____11. 1 P8 °विरमि, A विरामि..2 Ps केकयहो. 3 A जग. 4 A भडारा. 5 Ps जइवरहं. 6 SA महप्पयाणु.7 PS°भसेउ. 8 A दारा०. 9 PS सम्बहु, A सव्वह. 10 PS धम्म, A धम्म). 11 A असइत्तणेण. 12 PS °दोहित्तणेण.. ..[११] १ महश्च उपवासं च तो द्वौ; महोत्सव उपवासं च. २ अतिथि-द्वाराप्रेक्षणम्. ३ सहहयेण. ४ भरतेन.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org