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________________ कं० ८,९,९,१-९, ३०, ५-१०] सुन्दरकण्डं-पञ्चवण्णासमो संधि [२७७ ॥ घत्ता ॥ पभणइ राहवचन्दु _ 'मह अज्ज वि हियउ ण 'णीवइ । मारुइ अक्खि दवत्ति किं मुइय कन्त किं जीवई' ॥९ [९] जिण-चलणारविन्द-दल-सेवों मारुइ कहइ वत्त वलदेवहीं ॥ १ । 'जाणइ दिट्ठ देव जीवन्ती अणुदिणु तुम्हहँ णामु लयन्ती ॥ २ जहिँ अवसरें णिसियरेंहिँ गिलिज्जइ तहिँ तेहएँ वि काले पडिवजइ ॥ ३ इह-लोयहो तुहँ सामि पियारउ पर-लोयहाँ अरहन्तु भडारउ ॥ ४ झायइ साहु जेम परमप्पउ उववासेहिँ ल्हसावइ अप्पउ ॥५ म. पुणु गम्पि णिएन्तहुँ तियसहुँ पाराविय वावीसहँ दिवसहुँ ॥ ६ ॥ अङ्गुत्थलउ णवेवि समप्पिर तावहिँ महु चूडामणि अप्पिउ ॥ ७ अण्णु वि देवं एउ अहिणाणु जं किउ गुत्त-सुगुत्तहँ दाणु॥८ ॥ घत्ता ।। णिवडिय धरै वसु-हार णिणिउ अक्खाणु जडाइहे । अण्णु मि तं अहिणाणु कुढे लग्गु देव जं भाइहें' ॥ ९ [१०] तं णिसुणेवि वलु हरिसिय-गत्तर 'कहें हणुवन्त केम तहिँ पत्तउ' ॥१ एहऍ अवसरे णयणाणन्दें हसिउ णियासणे थिऍणे महिन्दें ॥२ 'एयहाँ केरउ वड्डउ ढड्डसु णिसुणे भडारा जं किउ साहसु ॥३ णरु णामेण अस्थि पवणञ्जउ पलाययहों पुत्तु रणे दुजउ ॥ ४ ॥ तासु दिण्ण मइँ अञ्जणसुन्दरि गउ उखन्धे वरुणहाँ उप्परि ॥ ५ वारह-वरिसंह(हँ) एक्कएँ वारऍ वासउ देवि मिलिउ खन्धारऍ ॥ ६ पर्वण-जणेरिऍ.पुणु ईसाऍवि घलिय घरहों कलङ्कउ लाऍवि ॥ ७ मइँ वि ताहे पइसारु ण दिण्णउ वणे पसविय तहि एहु उप्पण्णंउ ॥८ तं जि वइरु सुमरेवि हणुवन्तें तउ आएसें दूएं जंतें ॥९ प्पयरें महारएँ किउ कडमद्दणु हउ मि धरिउ स-कलत्तु स-गन्दणु ॥ १० 9. 1 A °लोयहुं. 2 P पई, s पइ. 3 Ps किलामइ. 4 PS वावीसहि. 5 PS ताए वि. 6PS एउ देव. 7 P °सुगुत्तहिं, सुगुत्तहि. 8 P S इ.9 P कुडे, 5 कुद्धि. 10 PS A भाइहो. ____10. 1 A थियइ. 2 P S महिंदि, A माहिदें. 3 P उखंधि, s उखंधे, A उखणद्धे. 4 P 'वरिसहो, 5 वरिसइ, A वरिसह. 5 P A दिण्णउं. 6 P एहु तहि, s यहु तहि. 7 A उप्पण्णउं. 8A णिसुगवि. 9 A ससंदणु. [८] 10 शीतलतामायाति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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