SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१०] स्यम्भुकिर पउपचार [क०७,७-१०,८,१-१०६ जन्ते जन्तु एन्तु पडिखलियउ वलु उज्जाणु जेम दरमलियऊ ।। ७ णासइ सयलोणामिय-मत्थउ जिग्गइन्दु णित्तुर मिरत्थर ॥८ विवरामुहु ओहुल्लिय-धयणउ - भग्ग-मडप्फरु मउलिय-णयण ॥ ९ ॥ घत्ता॥ वियलिय-पहरणु णासन्तु णिऍधि णिय-साहा । रहवर वाहेवि थिउ अग्गएँ तोयदवाहणु ॥ १० [८] . रावण-राम-किङ्करा रण भयङ्करा भिडिय विष्फुरन्ता। विडसुग्गीव-राहवा विजय-लाहवा णाई 'हणु' भणन्ता १ "वे वि पयण्ड वे वि विजाहर वेणि वि अक्खय-तोण धणुद्धर ॥२ वेण्णि वि वियड-वच्छ पुलइय-भुअ वेण्णि वि अर्जण-मन्दोयरि-सुअ ॥ वेण्णि वि पवण-दसाणण-णन्दण वेण्णि वि दुद्दम-दाणव-मद्दण ॥ ४ वेणि पर-वल-पहरणं-चड्डिय वेणि वि जय-सिरि-चहु-अवण्डिय॥५ वेणि वि राहव-रावण-पक्खिय वेण्णि वि सुरवहु-णयण-कडक्खिय ॥ ६ ॥ वेण्णि वि समर-सएहिँ जसवन्ता वेण्णि वि पहु-सम्माणु संरन्ता ॥७ "वेण्णि वि परम-जिणिन्दाँ भत्ता वेण्णि वि धीर वीर भय-चत्ता ॥८ घेण्णि वि अतुल मल्ल रणे दुद्धर वेण्णि वि रत्त-णेत्त फुरियाहर ॥९ ॥ धत्ता ॥ विहि मि महाहवु जो असुर-सुरेन्देहिँ दीसइ । रावण-रामहँ सो तेहउ दुक्कर होसइ ॥ १० [९] अमरिस कुद्धएण जस-लुद्धएण जयसिरि-पसाहमेणं । पेसिय विज हणुक्हो मेहवाहणी मेहवाहणेणं ॥ १ 'गम्पिण णियय-परकमु दरिसहि जिह सक्कहि तिह उप्परि कस्सिहि ॥२ "तं णिसुप्पिा विज विधम्भिय माया पाउस-लीलारम्भिय ॥३ 5 P S जेण. 6 PS °लुण्णामिय.' 7 P नितुरंगु णिरुत्थउ, s णितुरंगु णिरुत्थउ. 8 P s. मोहडिय. 8. 1 P 8 Toto. 2 P, mostly afer, rarely fater, s. throughout fafwat, A. mostly वेण्णि, rarely विण्णि. 3 Ps धणुहरकर; gloss in P घणुखर. 4A मंदोयदि, अंजण. 6 Ps पहरणपरवल. 6 P विलि, S A विण्णि. 7 P सरत्ता, A रस्संता. 8 Ps transpose the Padas rm this line. 9 P रावणराहवाहु, रोहवरावणहो, A राम.. 9. 1 Ps read दुवई॥ in the beginning. 2 A. omits this word. 3 Ps जिसणेविं. 4 Ps पवियंमिय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy