SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५२] सपम्भुकिउ पउमचरिउ १,9-20:39- [५] अण्णेकु किर गिरिवर मुअइ जावेहि । आरुट्ठऍण पवण-सुएण ताहि ॥ णिय-भुअ-वर्लण भामेवि णयलन्तरे। सहु.रहवरेण पत्तिउ पुव्व-सायरे ॥ १ सारहि णिहउ तुरङ्गम घाइय आसालियाँ महापहें लाइय ॥२ अक्खउ गयण-मग्गें उप्पालेवि आउ खणखें सिल संचालेवि ॥३ किर परिधिवइ वियड-वच्छ-स्थले हणुवें णवर भमाडेंवि णहयलें ॥४ घत्तिउ दाहिण-लवण-महण्णवे आउ पडीवउ भिडिउ महाहवें ॥ ५ ॥ पुणरवि घत्तिउ पच्छिम-सायरें तहि मि पराइउ णिविसब्भन्तरे ॥६ पुण आवाहिउ उत्तर-वासें पत्तु पडीवउ सहुँ णीसासें ॥ ७ पुणु णहयलहों चित्तु भामेप्पिणु मेरुहें पासेंहिँ भामरि देप्पिणु ॥ ८ पत्तु खणन्तरें णहें गजन्तउ 'मारुइ पहरु पहरु पभणन्तउ ॥ ९ ॥ पत्ता ॥ " (तं)णिसुणेवि पवोल्लिय सुर मणे डोल्लिय 'छण्डहों कह दूंअहाँ तणिय । दुक्कर जीवेसइ रामहों णेसइ कुसल-वत्त'सीयहें तणिय' ॥१० [६] जोयण-सऍण जो घल्लिउँ आवइ (१)। अइ-चञ्चलउ मणु कामिणिहें णावइ ॥ जं आहयणे जिणेवि ण सकिउ अरी। विभांविओ मणे हणुवन्त-केसरी ॥१ रावण-तणयहाँ फुरणु पसंसिउ 'वलु वड्डन्तरेण महु पासिउ ॥२ जसु संचारु सुरेहिँ ण वुज्झिउ तेण समाणु केम हउँ जुज्झिउ ॥३ किह जसु लधु णिहउ मइँ आहवें कुसल-वत्त किह पाविय राहवें ॥४ " मारुइ मणेण वियप्पइ जाहिँ मन्दोयरि-सुएण रणें ताहिँ ॥५. 5. 1 P. s. read दुवई in the beginning. 2 A °लंतरेण. 3 PS वित्तउ. 4 Ps उल्लालिबि. 5 P सिरु. 6 PS पुणु वि विपत्तिउ. 7 PS भावट्टिट. 8 PS पासें. 9 P दूभह, s दूयह, दूयहो. 10 P S सीयहो. 6.. 1 P. 8. begin the Kadavaka with दुवई 1.2 PS डि. 8. मिणिहि, कामिणिहे. 4 PSA विभाविउ. 5 PS हणुवंतु. 6 P SA .7 P असलबु, जसलुदु.8 P 5 किह. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy