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क०३,१-१४,-]
सुन्द्रकण्डं-अट्टचालीसमो संधि [२१९
[१३] 'जिह जिहमारुइ समरें ण भज्जइ। तिह तिह कण्ण णिरारिउ रजइ॥ तेन तेन तेन चित्तें ॥४॥१ वम्महत्राणहिं विद्ध उरत्थले।
कह वि तुलग्गैहिं पडियण महियले। तेन तेन तेन चित्तें ॥४॥२ : 'भो साहु साहु भुवणेक्कवीर जयलच्छि-वच्छ-लच्छिय-सरीर ॥३
भो साहु साहु अखलिय-मरंट्ट भड-भञ्जण पर-वल-मइयवट्ट ॥ ४ • भो साहु साहु पञ्चक्ख-मयण
सोहग्ग-रासि सप्पुरिस-रयण ॥ ५ भो साहु साहु कइकेय-तिलय कन्दप्प-दप्प-माहप्प-णिलय ॥६ भो साहु साहु तणु-तेय-पिण्ड दिढ-वियड-वच्छ भुव-दण्ड-चण्ड ॥७॥ भो साहु साहु रिउ-गन्धहत्थि उवमिजइ जइ उवमाणु अत्थि ॥८
॥घत्ता ॥ पई णाह परजिय हउँ समरें वरें एवहिँ पाणिग्गहणु करें। णिय-णांमु लिहेप्पिणु मुक्कु सरु णं दूउ विसजिउ पियहाँ घर ॥.९
[१४] 'जाव पहाणि वायइ अक्खरु। ताम णिरारिउ हियऍ सुहङ्करु। तेन तेन तेन चित्तें ॥४॥१ तेण वि गरुअउ णेहु करेप्पिणु।
वाणु विसजिउ णामु लिहेप्पिणु॥ तेन तेन तेन चित्तें ॥४॥२ सरु जोऍवि पवर-धणुद्धरीऍ परिओसें लङ्कासुन्दरीऍ॥३ अवगूढ पवणि थिरथोर-वाहु परिहअउ विजाहर-विवाहु ॥४ रेहइ सुन्दरि सहुँ सुन्दरेण वर-करिणि णाई सहुँ कुञ्जरेण ॥५ . णं रत्त सञ्झ सहुँ दिणयरेण णं सुरसरि सहुँ रयणायरेण ॥ ६ । णं सीहिणि सहुँ पश्चाणणेण जियपउम णाइँ सहुँ लक्खणेण ॥ ७ अह खणे खणे वणिज्जन्ति काइँ णं पुणु वि पुणु वि ता. जे ताई ॥ ८ ॥
॥ पत्ता ॥
एत्थन्तर हणुवें तुरिउ वलु णिम्मोहेंवि थम्भेवि किउ अचलु ।
सुरवहु-जण-मण-संतावणहों में' को वि कहेसइ रावणही ॥९ । 13. 1Ps begin with मिट्टिया. 2 P. तेण thrice. 3A चिंते. 4 P वम्मह, s वंम्मद. 5 s तुलग्गें. 6 PS °लंकिय.7 PS मरहु. 8 PS 'मइयवहु. 9 PS णाउ, A नामु. 10 PS मुक्क. 11 P घरे. __14. 1 P. begins with जंभेट्टिया, s. with जभिट्टिया. 2 P तेण thrice. 3 A तेन तेन चिते. 4 P सुंदरि सरि. 5 P S पुणई. 6 P निम्मोहिवि थभिवि, s णिम्मोहिवि मिवि, नं . मोहे मोहेवि only.TS मइ. 8 A रामणहो.
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