SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९०] सयम्भुकिउ पउमचरिउ .. [क० १६,३-११,१,१- दिण्ण स-सङ्ख पडह किउ कलयलु घोसिउ चउ-पयारु जिण-मङ्गलु ॥ ३ "जसुदुन्दुहि असोउ भामण्डलु सो अरहन्तु देउ तउ मङ्गलु॥४ 'जे गय तिहुयणग्गु तं णिकलु ते सिद्धवर देन्तु तउ मङ्गलु ॥ ५ जेहिँ अणङ्गु भग्गु जिउ कलि-मलु ते वर-साहु देन्तु तउ मङ्गलु॥ ६ जो छज्जीव-णिकाम्यहँ वच्छलु सो दय-धम्मु देउ तउ मङ्गलु' ॥ एम सु-मङ्गलु उच्चारेप्पिणु 'सिद्धवरहुँ णवकारु करेप्पिणु ॥८ जय-जय-सदें सिल संचालिय रावण-रिद्धि णाई उदालिय ॥९ मुंक पडीवी करयल-ताडिय दहमुह-हियय-गण्ठि णं फाडिय ॥ १० । ॥ घत्ता ॥ " परितुट्टे सुरवर-लोऍण पम्मुक्कु सं इं भु व-दण्डहिँ जय-सिरि-णयण-कडक्खणहों । कुसुम-वासु 'सिरे लक्खणहाँ ॥ ११ [४५. पञ्चचालीसमो सन्धि ] कोडि-सिलए संचालियऍ दहमुह-जीविउ संचालि(य)उ। .णहें देहि महियले णरेंहिँ आणन्द-तूरु अप्फालि(य): ॥ . [१] रह-विमाण-मायङ्ग-तुरङ्गम-वाहणे । विजउ घुट्ट सुग्गीवहाँ केरऍ साहणे ॥ १ एत्यन्तरे सिरे लाइय करेहिँ जोक्कारिउ वलु विजाहरेहिँ ॥ १ जगें जिणवर-भवणइँ जाइँ जाइँ परिअञ्चवि अञ्चेवि ताई ताइँ॥२ 20 पल्लट्ट पडीवउ सुहड-पयरु णिविसेण पत्तु किक्किन्ध-णयरु ॥३ एत्तिय कियइँ साहसइँ जई वि सुग्गीवहाँ मणें संदेह तो वि ॥४ 'अहों जम्बव चरिउ महन्तु कासु किं दहवयणहों किं लक्खणासु ॥५ कइलासु तुलिउ एक्के पचण्डु अण्णेक् पुणु पाहाण-खण्डु ॥ ६ . वड्डारउ साहसु विहि मि कवणु किं सुहगइ किं संसार-गमणु' ॥ ७ 25 जम्बर्वेण वुत्तु 'मा मणेण मुज्झु किं अज वि पहु सन्देहु तुज्झु ॥ ८ ___16. 1A omits lines 4 and 5. 2 cmits this pāda. 3 PS सिद्धवरहु. 4 P मुख, A सुकू. 5 P पम्मुक, A पमुक्कु. 6 P S सयं. 7 P S A सिटि. . . 1.. 1P s °तुरंग'. 2 At the end, A. reads ध्रुवकं. 3 P S °पयरु. 4 A जे. 5 PS तइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy