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क०१५, १-१,१५, १-९, १६, १-२] सुन्दरकण्डं-चउयालीसमो संधि [१८९
• [१४] । तं वयणु सुर्णेवि वयषुण्णएण. सुग्गीउ वृत्तु जम्वुण्णएण ॥ १ 'ऍहे होइ ण को विसावण्णु णरु सच्चउ पडिवक्ख-विणासयरु ॥२ जं चवइ संन्वु तं णिवहइ. को असिवरु सूरहासु लहइ ॥३
जो जीविउ सम्वुक्कहों हरइ जो खर-दूसण-कुल-खउ करइ ॥ ४ • सो रणे पहरन्तु केण धरिउ खय-कालु दसासहों अवयरिउ ॥ ५ परमागमु णीसंन्देहु थिउ • केवलिहिँ आसि आएसु किउ ॥६ आलिङ्गेवि वाहहिँ जिह महिल जो संचालेसइ कोडि-सिल ॥ ७ सो होसइ मल्लु दसाणणहों सामिउ विजाहर-साहणहों' ॥ ८
॥घत्ता॥ जम्ववहाँ वयणु णिसुणेप्पिणु धुणिउँ कुमारें भुअ-जुअलु। 'किं एके पाहण-खण्डेण धरमि स-सायरु धरणि-यलु ॥९
[१५] तं णिसुणेवि वयणु परितुट्टे वुत्तु जणदणु वालि-कणिढें ॥ १ . 'जं जं चवहि देव तं सच्चउ अण्णु वि एउ करहि जइ पच्चउ ॥ २ तो हउँ भिचु होमि हियइच्छिउ सूरहों दिवसु व वेल पंडिच्छिउ' ॥ ३ तं णिसुणेवि समर-दुस्सीलेंहिँ णरवइ वुज्झाविउ णल-णीलेंहिँ ॥४ 'जेण सरेंहिँ खर-दूसण घाइय । पत्तिय कोडि-सिल वि उच्चाइय' ॥५ एम चवेवि चलिय विजाहर णव-कंकाले णाई णव जलहर ॥ ६ लक्खण-राम चडाविय जाहिँ घण्टा-झुणि-झङ्कार-पहाणेंहिँ ॥ ७ कोडि-सिला-उद्देसु परांइय सिद्धेहिँ सिद्धि जेम णिज्झाइय ॥ ८
॥ घत्ता ॥ — जा सयल:काल-हिण्डन्तहुँ हुअ वण-वासें परम्मुहिय । __सा एवहिँ लक्खण-रामहुँ णं थिय सिय सवडम्मुहिय ॥९
[१६] लोयग्गों सिव-सासय-सोक्खहों जहिँ मुणिवरहुँ कोडि गय मोक्खहों॥१ सा कोडि-सिल तेहिँ परिअश्चिय गन्ध-धूव-वलि-पुहिँ अश्चिय ॥२
14. 1 P S पहु. 2 P*s कुइ सामण्ण. 3 P 8 जो. 4 P S पइसंतु. 5 P णिस्संदेह, s णिसंदेहु, A नीसंदेहु. 6 A सामिउं. 7 A धुणिउं.
15. 1 A वेले. 2 Ps वडिच्छिउ. 3°P समरे, s समरि. 4 Ps दुसीलेहिं. 5 P एत्तिय. 6 A पराइड.7A निझाइउ. [१५] १ वर्षाकाले.
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