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________________ १८८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क०११,९,१२,१-९,१३,१-९ ॥घत्ता ॥ वलएवहाँ वयणु सुणेप्पिणु किकिन्धाहिवेण हसिउ । 'किउ रत्तहाँ तण कहाणउ भोयणु मुऍवि छाणु असिउ ॥९ [१२] 5 खणे खणे वोल्लहि णाइँ अयाणउ किं पइँ ण सुर्यउ लोयाहाणउ ॥१ जइ वि किं पि अच्छरऍ ण किजइ तां किं माणुस-मेत्तें दिजइ ॥२ पूसमाणु जइ सीयहें पासिउ तो करें वयणु महारउ भासिउ ॥ ३ वरिसे वरिस तिहुवण-संतावणु जइ वि णेइ एक्कक्की रावणु ॥४ तो वि जन्ति तउ तेरह वरिसइँ जाइँ सुरिन्द-भोग-अणुसरिसइँ ॥५ " उप्परन्ते पुणु काइ मि होसई' तं णिसुणेवि वयणु वलु घोसइ ॥ ६ 'मइ मारेवर्ड वइरि स-हत्थे लाएंवउ खर-दूसण-पन्थें ॥ ७ तिय-परिहवु सबह मि गरूवउ णं तो पइ मि सइँ जि अणुहूअउ ॥८ ॥ घत्ता॥ - जो मइलिउ विहि-परिणामेण अयस-कलङ्क-पङ्क-मलेहि । 15 सो जस-पडु पक्खालेवउ दहमुह-सीस-सिलायलेंहि ॥९ [१३] तं णिसुणेवि वुत्तु सुग्गीवें 'विग्गहु कवणु समउ दहगीवें ॥१ एक कुरङ्गु एक्कु अइरावउ । पाहणु एक्कु एक्कु कुल-पावस ॥२ एक्कु समुदु एक्कु कमलायरु एक भुअङ्गमु एक खगेसरु ॥ ३ 20 एक्क मणुसु एक्क वि विज्जाहरु तहाँ तुम्हहुँ वड्डारउ अन्तरु ॥४ जगें जस-पडहु जेण अप्फालिउ । गिरि कइलासु करेंहिँ संचालिउ ॥ ५ जेण महाहवे भग्गु पुरन्दरु जमु वइसवणु वरुणु वइसाणरु॥६ जेण समीरणो वि जिउ खत्तें कवणु गहेणु तहों माणुस-मेत्तें' ॥ ७ हरि वयणेण तेण आरुट्टउणा साणच्छरु चित्त दुट्ठउ ॥८ ॥ घत्ता ॥ • 'अङ्गङ्गय-णल-सुग्गीवहाँ वाहु-सहेज्जा होहु छुडु । हउँ लक्खणु एक्कु पहुच्चमि जो दहंगीवहाँ जीव-खुडु' ॥९ 17 Ps किर. 18 Ps तेण. 19 A तणउं कहाणउं. 12. 1 P A अयाणउं. 2 P सुउ, S उ. 3 PS A लोयाहाणउं. 4 A तो. 5 P S उवरत्तें, A उप्परंति. 6 s मारेव्वउ. 7 S लायेव्वउ. 8 A निय. 9 P गुरुक्कड, s गुरूवउ. 10 A सयलु. 11 Ps °मलेण. 12 P °पहु, °पटु, A °वडु. 13 s पक्खालेव्वऊ. 14 P S सिलायलेण, A सिलायडेहिं. 13. •1s गहहोतं. 2 P S A हउ. 3 P S दहवयणहो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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