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________________ १८६ ] सयम्भुकिउ पउमचरिउ सुग्गीवहाँ वयणु सुणेष्पिणु णव- पाउसें सलिलें सित्त 5 U णिय कह कहुँ लग्गु विज्जाहरु 'सामिहें जामि जाम ओलग्गऍ तहिँ कन्दन्ति सीय आयण्णेंवि है वच्छत्थ असिवर - घाएं दुक्खु दुक्खु चेयण लहेप्पिणु जिह जच्चन्धु दिसाउ विभुल्लर निसुर्णेवि सीया - हरणु महागुणु अँण्णु वि तुट्ठएण मण-र्भाव 10 15 णि रयणकेसि सुग्गीर्वेण जसु मण्डऍ णाइँ हरेष्पिणु J विज्जा हर-कुल- भवण-पईवें 20 'देव देव तरु दुक्ख - महाणइ सुवि वय वलहदें 'भो भो वच्छ वच्छ दे साइउ एवं भणेवि तेण सव्वङ्गिड 'कहें कहें केण कन्त उद्दालिय तं णिसुणेवि चविउ विज्जाहरु .' देव देव लुइँ कन्दन्ती 25 ॥ धत्ता ॥ हियवऍ हरिसु ण माइयउ । विञ्झु जेम अप्पाईंयउ ॥ ९ [<] गिन्दि व गरुड - विहङ्गमेण महु विज्जा छेउ करेपिणु अतुल- मल्लु भामण्डल - किङ्करु ॥ १ दि विमाणु ताम गणग्गऍ ॥ २ धाइ रावणु तिण-समु मण्णेंवि ॥ ३ गिरि व पोट्टि वज्ज-निहाएं ॥ ४ पाडिउ विज्जा - छेउ करेप्पिणु ॥ ५ अच्छमि तेण एत्थु एक्कलर' ॥ ६ उभय-करेंहिँ अवगूढँ पुर्णपुणु ॥ ७ दिण्ण विज्ज तहाँ हयल - गामिणि ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ जहिं अच्छई वलु दुम्मंणउ । आणि दहवयण तर्णउ ॥ ९ [९] Jain Education International रामों वद्धाविउ सुग्गीवें ॥ १ सीय तणिय वत्त ऍहुं जाणई' ॥ २ हसिउ स विभमु कहकह सदें ॥ ३ जीविउ णवर अज्जुं आसाइड' ॥ ४ ह - महाभरेण आलिङ्गिउ ॥ ५ किं मुअ किं जीवन्ति हिालियं' ॥ ६ ाइँ जिन्दिहों अगऍ गणहरु || ७ हा लक्खण हा राम भणन्ती ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ [ क० ७, ९, ८, १- ९; ९, १-९ 3 PA माइउ. 4rs पाउस. 5 P अप्पाइउ. 8. 1 Ps इव लोहिड. 2 B एक्केलउ, s एकल्लउ 3Ps उहयकरहिं उवगृदु. 4 P पुणु पुणु, s पुणु वि पुणु. 5 P अध्पु. 6 Ps भामिणि 7Ps सुग्गीवें. 8 P s वलु अच्छइ. 9 8 A दुम्मणउं, 10s A तणउं. J [८] १ हतः २ आलिंगणं, अंकमाला दत्ता. [९] १ आलिङ्गनम्. २ सर्पिणी इव गरुडपक्षिणा. 9. 1 P 3 यहु, A लहु. 2 PS मज्झु आसासिउ 3 P एवं 4 P अग्गड़, A अग्गई C सारङ्गि व पञ्चाणणेण । णिय वइदेहि दसाणणेण ॥ ९ G For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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