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________________ कं०° २, १–९; ३, १–११ ] 'कहें पडिहार ग्रपि सुग्गीवहों अच्छइ सो वण-वासें भवन्त जं तुह र अवसरु सारिउ तो बरिहउँ उवयारु समारमि जं संदेस दिण्णु कुमारें 'देव देव जो समरें अणिडिउ आउ महलु रामाएसें किं पइसरउ किं व मं पइसउ • तं व सुवि सुग्गीर्वेण 'किं केण विगाहा - लक्खणु किं लक्खणु जं लक्ख-विसुद्ध उ किं लक्खणु जं पाइय- कों किं लक्खणु जं छेन्दे णिदिट्ठउ किं लक्खणु णर-णारी - अङ्गहुँ पण पुणु पडिहारु वियक्खणु सो लक्खणु जो दसरह - णन्दणु सो लक्खणु जो णिसियर - मारणु सो लक्खणु जो राम - सहोयरु सो लक्खणु जो रवर- केसर दसरह - तर सुमित्तिर्हे जायउ अणिज देवं पयतें म पन्थें पइँ पेसेसइ सुन्दरकाण्डं - घयालीसमो संधि [१८३ [२] जो परमेसरु जम्बू - दीवहों ॥ १ अप्पुणु रज्जु करहि णिच्चिन्त ॥ २ चङ्गउ पउमणाहु 'उवयरिङ ॥ ३ विडसुग्गी जेम तिह, मारमि' ॥ ४ गम्पि कहिय वत्त पडिहारें ॥ ५ अच्छइ लक्खणु वारें परिडिउ ॥ ६ जमु पच्छण्णु णाइँ पर - वेसें ॥ ७ गम्पिणु वत्त काइँ तहाँ सीसउ' ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ Jain Education International मुहु पडिहारहों जोइयउ । वारें महारऍ ढोइयउ ॥ ९ www 2. 1 Ps कंवू. 2 P s रुअंतर. 3 P वियारिउ, s वेय। रिउ 4 P पह मारमि, 8 पइसारमि. 5PsA महारइ. 3. 1 A छंदें दिट्ठउ. 2 P भयहुं, s भायहु. 3 Ps वासें. 4 A अणुणिज्जइ. 5 Ps णाह. [२] १ (R's reading ) यः सुग्रीवः समुद्रमध्ये कम्बू - नाम - द्वीपस्तस्य स्वामी, कम्बू - नाम - द्वीपमध्ये किक्किंध-नाम-नगरः, तत्र राज्य स्थितिः २ रामचंद्रः. ३ ( P's reading ) प्रतारितः, वृञ्चितः. [३] १ मनी (ना)पनीयं. [३] . 15 किं लक्खणु जो गेय-विद्धउ ॥ १ किं लक्खणु वायरणहों सव्व ॥ २ किं लक्खणु जं भरहें गविदुउ ॥ ३ किं लक्खणु मायङ्ग-तुरङ्गहुँ' ॥ ४ 'एयहुँ मज्झें ण एक वि लक्खणु ॥ ५ सो लक्खणु जो पर-वल- मद्दणु ॥ ६ सम्वु - कुमार - वीर- संघारणु ॥ ७ सो लक्खणु जो सीयहें देवरु ॥ ८ सो लक्खणु जो खर- दूसण- अरि ॥ ९ रामें सहुँ वण-वासों आयउ ॥ १० ॥ घत्ता ॥ जाव ण कुप्पइणिय-मण | मायासुग्गीवों तणेण ॥ ११ 5 For Private & Personal Use Only 10 20 25 www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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