SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२] सयम्भुकिउ पडमचरिउ [क० १९,२-९,1,120 जय-मङ्गल-तूर-णिघोसु किउ' सहुँ तारऍ रज करन्तु थिउ ॥२ . एत्तहें वि रामु परितुट्ट-मणु _ णिविसेण पराइउ जिण-भवणु ॥३ किय वन्दण सुह-गइ-गामियों भावें चन्दप्पह-सामियों ॥ ४ . 'जय तुहुँ गइ तुहुँ मइ तुहुँ सरणु तुहुँ माय वप्पु तुहुँ वन्धु-जणु ॥५ । तुहुँ परम-पक्खु परमत्ति-हरु तुहुँ सव्वहुँ परहुँ पराहिपरु ॥६ तुहुँ दंसणे णाणे चरित्तै थिउ तुहुँ सयल-सुरासुरेहिँ णमिउ ॥७ सिद्धन्ते मन्तें तुहुँ वायरणे सज्झाएँ झाणे तुहुँ तव-चरणे ॥ ८ . ॥ घत्ता ॥ अरहन्तु वुद्ध तुहुँ हरि हरु वि तुहुँ अण्णाण-तमोह-रिउ । . तुहुँ सुहुमु णिरञ्जणु परमपउ तुहुँ रवि वैम्भु स यम्भु सिउँ'॥९ [४४. चउयालीसमो संधि] मणु जूरइ आस ण पूरइ खणु वि सहारणु णेउ करइ । सो लक्खणु रामाएसें घरु सुग्गीवहीं पइसरह ॥ [१] " विडसुग्गीवें समरे सरं-भिण्णऍ गएँ सत्तमऍ दिवसे वोलीणऍ ॥१. . वुत्तु सुमित्ति-पुत्तु वलएवें 'भणु सुग्गीउ गम्पि विणु खेवें ॥२ तं दिट्ठन्तु णिरुत्तउ जायउ सव्वहों सीयलु कजु परायउ ॥ ३ जं भुञ्जाविउ रज्जु स-तारउ कालहों फेडिउ वइरि तुहारउ ॥ ४ तं उवयारु किं पि जइ जाणहि कन्तहें तणिय वत्त तो आणहि ॥५ 20 गउ सोमित्ति विसजिउ रामें सरु पञ्चम मुकु णं का ॥ ६ गिरि-किक्किन्ध-णयरु मोहन्तउ कामिणि-जण-मण-संखोहन्तउ ॥७ जिह जिह घर सुग्गीवहों पावइ तिह तिह जणु विहडप्फड धावइ ॥८ ण गणइ कण्ठउ कडउ गलिण्णउ णाइँ कुमार मोहणु दिण्णउ ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ किक्किन्ध-णराहिव-केर दिट्ट पुरउ पडिहार किह। थिउ मोक्ख-चार पडिकूलउ जीवों दुप्परिणामु जिह ॥ १० ॥ 19.- 1 Ps °णिग्योसु. 2 PS परमक्खरु परमंतिहरु. 3 P गुणे, s गुणि. 4 P वम्हु. 5s पिड. 1.. 1 PS णवि. 2 A रामाएसएण. 3 A ध्रुवकं at the end. 4 PS A °सुग्गीव. 5A रण. 6 A सुग्गीउं. 7 P A पंचमउं. 8 A गलिल्लउ. 9 A दिण्णउं. 10 P केरळ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy