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________________ १७८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० १०,९,११,१-९) . ॥घत्ता ॥ . सुग्गीवें रामें लक्खणेण गिरि किक्किन्धु विहावियउ । पिहिमिएँ उच्चाऍवि सिर-कमलु मउड णाई दरिसावियउ॥९ [११] । थोवन्तरें धण-कञ्चण-पउरु लक्खिजइ तं किक्किन्धणयरु ॥१ णं णहयलु तारा-मण्डियउ णं कव्वु कइद्धय-चड्डियउ ॥२ णं हणुअ-विहूसिउ मुह-कमलु विहसिउ सयवत्तु णाइँ स-णलु ॥ ३ णं णीलालङ्कित आहरणु णं कुन्द-पसाहिउ विउल-चणु ॥४ सुग्गीव-वन्तु णं हंस-सिरु णं झाणु मुणिन्दहुँ तणउ थिरु ॥ ५ " माया-सुग्गीवें मोहियउ कुसलेण णाई कामिणि-हियउ ॥ ६ एत्थन्तर वद्धिय-कलयलेंहिं जम्वव-कुन्देन्दणील-णलेंहिँ ॥७. सोमित्ति-विराहिय-राहवेंहिँ सव्वेहि णिव्बूढ-महाहवेहि ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ . सुग्गीवहों विहुरे समावडिएँ वहु-संमाण-दाण-'मणेंहिँ । " .वेढिजइ तं किक्किन्धपुरु णं रवि-मण्डलु णव-घणेहिँ ॥ ९ [१२] वेढेप्पिणु पट्टणु णिरवसेसु पट्ठविउ दूउ विड-भडहाँ पासु ॥ १ सुग्गीवें रामें लक्खणेण सन्देसउ पेसिउ तक्खणेण ॥ २ 'किं वहुणा कहें परमत्थु तासु *जिम भिडु जिम पाण लएवि णासु'॥३ " तं वयणु सुणेवि कप्पूरचन्दु संचल्लु णाइँ खयकाल-दण्डु ॥४ दुजउ माया-सुग्गीउ जेत्थु .. सह-मण्डवें दूउ पड्छ तेत्थु ॥ ५ जो पेसिउ रामें लक्खणेण सन्देसउ अक्खिउ तक्खणेण ॥ ६ 'णउ णासइ अज्जु वि एउ कजु कहाँ तणिय तार कहाँ तणउ रज्जु ॥ ७ पहु पाण लएप्पिणु णासु णासु जीवन्तु ण छुट्टहि अवसु तासु ॥८ ॥ घत्ता ॥ सन्देसउ विड-सुग्गीव सुणे पुणरवि सुग्गीवहाँ तणउ । सहुँ सिर-कमलेण तुहारऍण रज्जु लएव्वउ अप्पणउ' ॥ ९ ___ 11. 1 P अइद्धय°, s कयद्धय. 2 P S मुणिंदहों. 3 SA तणउं. 4 A तं माया सुग्गेवे हियउ. 5 Ps वट्टिय. 6 P S 'विराहिव. 7 Ps 'मणिहिं, s 'माणेहिं. 12. 1 PS दिज्जइ.2A किं. 3 5 कपूरचंडु. 4 A कहि. 5 A तणउं. 6 PS A तणउ. 7 A लएसइ अप्पणउं. . [११] १ चिवुको. २ सर-विशेष, अन्यत्र नाल. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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