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________________ क०४, ३-९;५, १-९;६, १-५] सुन्दरकण्डं-तियालीसमो संधि ( १७५ । संमाणिउ गउ पल्ल९ दूर पइसारिउ पहु आणन्दु हूउ ॥ ३ तं तूरहँ सङ सुणेवि तेण सो वुत्तु विराहिउ राहवेण ॥ ४ 'सहुँ साहणेण कण्टइय-देहु आवन्तउ दीसइ कवणु एहु' ॥५ तं णिसुणेवि णयणाणन्दणेण वुच्चइ चन्दोयर-णन्दणेण ॥ ६ "सुग्गीव-वालि इय' भाइ वे वि वड्डारउ गउ पवज्ज लेकि॥७ एहु वि जिणेवि केण वि खलेण वण-वासों घल्लिउ भुअ-चलेण ॥ ८ .॥ घत्ता ॥ वर-वाणर-धउ सूररय-सुउ तारा-वल्लहु विउलमइ । जो सुबइ कहि मि कहाणऍहिँ ऍहु सो किक्किन्धाहिवई' ॥ ९ ॥ स-विराहिय लक्खण-रामएव वोल्लन्ति परोप्परु जाव एव ॥ १ तिणि मि सुग्गीवें दिट्ठ केम आगमेण तिलोअ तिवाय जेम ॥२ चउ दिस-गय एक्कहिँ मिलिय णाइँ वइसारिय णरवइ जम्बवाइ ॥ ३ संमाणेवि पुच्छिय लक्खणेण 'तुम्हहँ अवहरिउ कलत्तु केण ॥४. तं वयण सुर्णेवि सबहुँ महन्तु णमियाणणु पभणइ जम्बवन्तु ॥ ५ 'वण-कीलऍ गउ सुग्गीउ जाम थिउ पइसेंवि विडसुग्गीउ ताम ॥ ६ थोवन्तर वालि-कणिमु आउ सामन्त-मन्ति-मण्डल-सहाउ ॥ ७ 'णउ जाणिउ विहिं मि कवणु राउ मणे विम्भउ सबों जणहाँ जाउ ॥ ८ ॥घत्ता॥ सुग्गीव-जुअलु कोड्डावणउ पेक्खेंवि रहस-समुच्छलिउ । वलु अद्धउ सुग्गीवहाँ तणउ मायासुग्गीवहाँ मिलिउँ ॥९ एत्तहें वि सत्त अक्खोहणीउ एत्तहे वि सत्त अक्खोहणीउ ॥ १ थिउ साहणु अद्धौवद्धि होवि अङ्गङ्गय विहडिय सुहड वे वि ॥ २ . मायासुग्गीवहाँ मिलिउँ अङ्ग अङ्गाउ सुग्गीवहाँ रण अभङ्ग ॥ ३ 25 'विहिँ सिमिरेहिँ वे वि सहन्ति भाइ णिसि-दिवसेंहिँ चन्दाइच्च णाइँ ॥४ एत्तहें वि वीरु विप्फुरिय-वयणु सुउ वालिहें णामें चन्दकिरणु ॥५ 5. 1 PS अवहरिय. 2 5 णविआ. 3 A वलि सुग्गीउ. 4 A विण्ह वि. 5A कोडावणउं. 6s A तणउं. 7 P मिलिअड. ___6. 1 P. A. omit this pada.LS एत्तहि. 3 A होवि, 4 A मिलिउं. 5A महंगु. 6 Ps A विहि. [५] १ अधोमुखः. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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