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________________ १७४] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० २,५-९,३,१-१२,१-२ सोमित्ति को वि चित्तेण थिरु तें सम्वुकुमारहों खुडिउ सिरु ॥५ असि-रयणु लइउ 'तियसहुँ वलिउ चन्दणहिहें जोवणु दरमलिउ ॥ ६ कूवारें गय खर-दूसगहुँ। अजयहुँ जय-लच्छि -विहूसणहुँ ॥ ७ अभिट्ट ते वि सहुँ लक्खणेण तेण वि दोहाविय तक्खणेण ॥ ८ ॥घत्ता॥ केण वि मण अमरिस-कुद्धऍण हिय गेहिणि वणे राहवहाँ। पाडिउ जडाइ लग्गन्तु कुढे एत्तिउ कारणु आहवाँ ॥९ [३] एहिय णिसुणेवि संगाम-गइ चिन्ताविउ किक्किन्धाहिवइ ॥१ "किर पइसमि गम्पि जाहँ सरण किउ दइवें तह मिणवर मरण ॥२ एहएँ अवसरे को संभरमि किं हणुअहो सरणु पईसरमि ॥ ३ तेण वि रिउ जिणेंवि ण सक्कियउ पञ्चेल्लिउ हउँ णिरत्थु कियउ ॥४ किं अब्भत्थिजइ दहवयणु णं णं तिय-लम्पडु लुद्ध-मणु ॥ ५ अम्हइँ विणिवाऍवि वे वि जण सहुँ रज्जें अप्पुणु लेइ धण ॥ ६ "खर-दूसण-देह-विमर्पणहुँ। वरु सरणु जामि रहु-णन्दणहुँ' ॥७ चिन्तेविणु किकिन्धाहिवेण हक्कारिउ मेहंणाउ णिवेण ॥ ८ • 'तं गम्पि विराहिउ एम भणु वुच्चइ सुग्गीउ आउ सरणु' ॥ ९ पिय-वयणहिँ दूउ विसज्जियउ गउ मच्छर-माण-विवजियउ॥ १० पायाल-लङ्क-पुर पइसरेवि तें वुत्तु विराहिउ जोक्करेंवि ॥ ११ ॥घत्ता ॥ 'सुग्गीउ सुतारा-कारणेण विड-सुग्गीवें घल्लियड़ । । किं पइसरहु किं म पइसरउ तुम्हहँ सरणु समल्लियां' ॥ १२ [४] तं णिसुणेवि हरिस-पसाहिएण 'पइसर' पवुत्तु विराहिएण ॥१ 23 'हउँ धण्णउ जसु किक्किन्धराउ अहिमाणु मुएप्पिणु पासु आउ' ॥२ 5 A वलिउं. 6 P s °दूसणाहु. 7 PS विहूसणाहु. 8 P आभिट्ट, S आभिट्ट. 9 A सरसल्लिय. 3. 1 P8 जाह गंपि. 2 PS णवर ताह मि. 3 P पञ्चलिउ. पञ्चलिउ. 4 Pषभत्थिजउ. 54 अम्हे हिं. 6 P विमद्दणाहुं, S °विमद्दणाहु. 7 P जाहु, s जाहुं. 8 PS णंदणाहु. 9Ps हेमणाउ, A मेहनाउ. 10 PS मंथरगमण. 11 P s°पुरु. 125 वि तारा. 13 A पइसउ किं व म पइसरउ. 14 P पइसउ corrected as पइसरउ, पइसउ. 4. 1 P A धण्णउं. 2 P मुएविणु. . [२] १ देवानाम्. [३] १ खरदूसणानाम्. २ (P's. reading) उत्तालः. ३ समायातः. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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