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________________ कं० ७, १–९; ८, १–९ ] सम्पेइ दक्खवन्तु इंय सेज्जऍ 'केति णियय - रिद्धि महुँ दावहि एउ जं रावण रज्जु तुहारउ एउ एउ जं पट्टणु सोमु सुदंसणु जं राउलु णयण-सुहङ्करु एउ जं दावहि खर्णे खणें जोबणु . * एउ जं कण्ठर कडउ स मेहलु रहवर - तुरय- गइन्द-सयाइ मि सण व काइँ किं समलहणेण जिह जिह चिन्तिय आस ण पूरइ 'विहि तेत्तर देइ जं विहियेउ उ. कम्मेण केण संखोहिउ • धिधि अहिलसिय कुणारि विलीणी यह पासिउ जाउ सु-वेसउ एव विचित्तु चित्तु साहारें वि सीर्यऍ समउ खेड्डुं आमेल्लॆवि रवर- विन्देहिँ परिमिउ दहमुहु • गिरि दिड तिकूडु रवि-डिम्भों दिष्णु उज्झाकडं - बायाली समो संधि [ १६९ [७] दोच्छिउ रावणु राहव- भजऍ ॥ १ अप्पड जगहों मझें दरिसीवहि ॥ २ तं महु तिण- समाणु हलुआरउ ॥ ३ तं महु महों णाइँ जमसासणु ॥ ४ तं महुइँ मसाणु भयङ्करु ॥ ५ तं महु मणहों णाइँ विस-भोयणु ॥ ६ सील - वह तं मलु केवलु ॥ ७ आय महु पुणु गणु ण काइ मि ॥ ८ ww ॥ घत्ता ॥ जहिँ चारितहों खण्डणउ । महु पुणु सीलु जें मण्डणउ ॥ ९ [2] Jain Education International तिह तिह रावणु हियऍ विसूरइ ॥ १ किं वैढ जाइ णिलाडऍ लिहियंउ ॥ २ जाणन्तो वि तो वि जं मोहिउ ॥ ३ वुण्ण-कुरङ्गि जेम मुह दीणी ॥ ४ महु घरें अस्थि अयउ वेसउ' ॥ ५ दुक्खु दुक्खु मण - पसरु णिवारेंवि ॥ तं गवाणरमणु वणु मेलॅवि ॥ ७ संचल्लिउ यि यरिहें अहिमुहु ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ जण-मण-णयण-सुहावर्णंउ । णं महि-कुलवहुअथणउ ॥ ९ 7. 1 sA संपय 2 P A कित्ति 3 P दरिसावड़ि, s दरिसावहिं. 4 Ps जं दावहि. 5 A तुहारउं. 6 Ps विहूणेहिं. 7 A सयाहूं. 8 PSA मायहि. 9 A काई. 10 PA खंडणउ . 8. 1 P विहिउं. 2 A बहु. 3 A निडालए. 4 P लिहिअउं. 5 A कुमारि. 6 Ps भायहो . 7Ps अणेय सुवेसउ 8°P सीयहे, s सीयहिं. 9 P खेडू, s पेडु. 10s A चणउं. 11 Ps डिम्हो . 12 A थणउं. स० प० च० २२ For Private & Personal Use Only 5 10 20 www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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