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उज्झाकण्डं-बायालीसमो संधि [ १६५
॥घत्ता ॥ . तिहुअण-रक्खसहों दारेवि दिसि-वहु-मुह-कन्दरु । उवरें पईसरविणं सीय गवेसइ दिणयरु ॥९
[१८] रयणिहें तिमिर-णियर-रऍ भग्गएँ णिव रावणहाँ आय ऑलग्गएँ ॥१ ।। मय-मारिच्च-विहीसण-राणा अवर वि भुवणेकेक-पहाणा ॥२ खर-दूसण-सोएण 'णयाणण • णं णिकेसर वर पञ्चाणण ॥ ३ णिय-णिय-आसणेहिँ थिय अविचल भग्ग-विसाण णाई वर मयगल ॥४ मन्ति-महल्लएहिँ एत्थन्तर णिसुणिय सीय रुअन्ति पंडन्तरें ॥५ भणइ विहीसणु 'ऍह को रोवइ वारवार अप्पाणउ सोअइ ॥६ णावइ पर-कलत्तु विच्छोइउ' पुणु दहवयणहाँ वयणु पजोइउ ॥ ७ 'मञ्छुडु एउ कम्मु तुह केरउ अण्णहाँ कासु चित्तु विवरेरउ' ॥८ तं णिसुणेवि सीय आसासिय कलयण्ठि व पिय-वयणहिँ भासिय ॥ ९ 'ऍहु दुजणहों मझें को सजणु णिम्व-वणहों अब्भन्तरें चन्दणु ॥ १०
॥ पत्ता॥ विहुरे समावडिऍ ऍहु को साहम्मिय-वच्छलु । जो मइँ धीरवइ एवड्डु कासु स इँ भु व-वलु' ॥ ११
[४२. बायालीसमो संधि] पुणु वि विहीसणेंण दुव्वयणेहिं रावणु दोच्छइ । तेत्थु 'पडन्तरण आसण्णउ होऍवि पुच्छइ ॥
[१] 'अक्खहि सुन्दरि वत्त णिभन्ती कहिँ आणिय तुहुँ एत्थु रुवन्ती ॥१ कासु धीय कहि को तुम्हहँ पई' अवख' वहन्तु विहीसणु जम्पइ ॥ २ 'कवणु ससुरु कहि को तुह देवरु अत्थि पसिद्धउ को तुह भायरु ॥ ३
18. 1 P तिमरि", s तिमिरि. 2 A ‘गए. 3 P S 'मारीचि. 4 s अवर. 5 P S वणंतरे. 6 PA अप्पाणउं. 7 P एह, एहु. 8 A महु. .
1. 1 PS दुच्छइ. 2 A होएविणु. 3 PS णिरुत्ती, A निभंती, 4 PS कहि. 5 A तू नाणिय. 6 PS एण. 7 A तुरंती. [१८] १ नताननाः. [१] १ पटन्तरेण. २ चिन्तावान्.
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