________________
१६४ ] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
15
जाम ण आयर्णे ताव राहि
5
तं णिसुर्णेवि आरु दसाणणु कोवाल - पलित्तु लङ्केसरु 'किं जम - सासण - पन्थें लायमि अवसें भय वसेण इच्छेसइ तहिँ अवसरें स-तुरङ्ग स-रहवरु 1. आय रति णाणाविह-रूवेंहिं खर-साणउल-विराल-सियाले हिं रक्खस-सीह-वग्घ-गय-गण्डेहिँ तं उवसग्गुणिएवि भयावणु घोरु रउद्दु झाणु संचूरेंवि
C
'जाव ण णीसरिय तावणिवित्ति महु
'पहय पओस पणार्सेवि णिग्गय • णिसियैरि व गय घोणावङ्किय सूर भएण णाइँ रणु मेले वि दीवा पज्जलन्ति जे सयणेंहिँ उडिउ रवि अरविन्दाणन्दउ
सञ्झाएँ तिलेउ दरिसाविउ * णं मम्भीस देन्तु वल-पत्ति जग-भवों वो हिउ दीवउ
[ क० १५, ९:१६, १ – ११; १७, १–८
॥ घत्ता ॥
कपिंज्जहि वर - णारायहिँ । पडु राहवचन्दहों पीयहिं ॥ ९ [१६]
णं घेणें गंजमाणे पञ्चाणणु १ चिन्तइ विज्जाहर - परमेसरु ॥ २ किं उवसग्गु किंपि दरिसावमि ॥ ३ महु मयणग्गि समुल्हावेसइ' ॥ ४ उ अत्थवणहों ताम दिवायरु ॥ ५ अट्टहास मेलन्तेंहिँ भूऍहिँ ॥ ६ वहु- चामुण्ड - रुण्ड - वेयालेहिं ॥ ७ मेस - महिस-वस- तुरय- णिसण्डेंहिं ॥ ८ तो विण सीयहें सरणु दसाणणु ॥ ९ थिय म धम्म - झाणु 'आऊरेंवि ॥ १०
॥ घत्ता ॥
उवसग्ग- भयहों गम्भीरहों । चविह- आहार - सरीरहों ॥ ११
Jain Education International
[ १७ ]
हस्थि- हड व सूर - पहराहय ॥ १ भग्ग-मडम्फर माण-कलङ्किय ॥ २ पइसइ जयरु कवाडइँ पेल्लेंवि ॥ ३ णं णिसि वलैवि णिहालइ णयर्णेहिं ॥ ४ णं महि- कामिणि-केर अन्दउ णं सुकइहें जैस- पुञ्ज पहाविउ ॥ ६ पंच्छलें णाइँ पधाइड रति ॥ ७ ाइँ पु वि पुणु सो जें पडीवर ॥ ८
8 P कपजहि, S रूप्पज्जइ, 4 कष्पिजहिं. 9 A विज्जाहिवह 10 4 पाएहिं.
16. 1 A घण. 2 P s गजमाणु. 3P कोहाणल°. 4 A विज्जाहरु. 5 A णं. 6 A दुक्कु. 7 A संझ. 8 A खरमंडलवेशल'. 9 A omits वस.
17. 1 P णिसिअर, s णिसियरो. 2 PS भग्गु मडप्फरु. 3Ps °यर विंदा. 4 Ps किड आणंद, A केर अदउ. 5 वि तिलउ. 6 PS जसु. 78 पत्तिहिं. 8 P पच्छए. 98 रतिहिं.
•
[१६] १ पूरयित्वा.
[१७] १ प्रथम-प्रहर-संध्या प्रत्यूष-प्रहृताः सूर्य-उदयः, प्रभात संध्या. २ मन्त्रैस्ताटि (डि) ता.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org