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१५४] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
[क०१५,१-१०,१६-६
[१५] ॥ दुवई ॥ वुत्तु विराहिएण 'सुर-डामर तिहुअण-जण-भयावणे।
५ वणे णिवंसहुँ ण होइ खर-दूसणे मुएँ जीवन्ते रावणे ॥१ सम्वुक्कु वहति असि-रयणु लेवि को जीवइ जम-मुहें पइसरेवि ॥२ 5 जहि अच्छइ इन्दइ भाणुकण्णु पञ्चामुहु मउँ मारिच्चि अण्णु ॥३ घणवाहणु जहिँ अक्खय-कुमारु सहसमइ विहीसणु दुण्णिवारु ॥४ हणुवन्तु णीलु णलु जम्बवन्तु सुग्गीउ समर-भर-उवहन्तु ॥५ अङ्गङ्गग्य-गवय-गवक्ख जेत्थु तहाँ वन्धु वहवि को वसइ एत्थु ॥६ वयणेण तेण लक्खणु विरुद्ध गय-गन्धे णाइँ मइन्दु कुटु ॥७ 10 'सुट्ठ वि रुद्रुहिँ मयङ्गमेहिँ किं रुम्भइ सीहु कुरङ्गमेहि ॥८ रोमग्गु वि वङ्कु ण होइ जेहिं किं णिसियर-सण्टेंहिँ गहणु तेहिँ ॥९
॥ घत्ता ॥ जे णरवइ अक्खिय रावण-पक्खिय ते वि रणङ्गण णिवमि। छुडु दिन्तु णिरुत्तउ जुज्झु महन्तउ दूसण-पन्थें पट्ठवमि' ॥१०
[१६] ॥ दुवई ॥ भणइ पुणो वि एम विजाहरु 'अच्छेवि किं करेसहुँ ।
तमलङ्कार-णयरु पइसेप्पिणु जाणइ तहिँ गवेसहुँ' ॥१ . वलु वयणेण तेण, सहुँ साहणेण, संचल्लिउ णाइँ महासमुहु, जलयर-उदु, उत्थल्लिउ ॥२ दिण्णाणन्द-भेरि, पडिवक्ख-खेरि, खर-वजिय णं मयरहर-वेल, कल्लोलवोल, गलगजिय ॥ ३. उब्भिय कणय-दण्ड, धुवन्त धवल, धुअ-धंयवड रंसमसकसमसन्त-, तडतडयडन्त-, कर गय-घड ॥४ कत्थइ खिलिहिलन्त, हय हिलिहिलन्त, णीसरिया चञ्चल-चडुल-चवल, चलवलय पवल, पक्खरिया ॥५ कत्थइ पहें पयट्ट, दुग्घोट्ट-थट्ट, मय-भरिया
सिर-गुमुगुमुगुमन्त,-चुमुचुमुचुमन्त, चञ्चरिया ॥६ 15. 1 Ps विराहिवेण. 2s णिवसहो. 3 A दूसण. 4 A जीवंत. 5 PS मइ. 6 PS जंबुवंतु. 7 A अयंगमेहिं. 8 P गिरुत्तउं. 9 7 महंतउं,
16. 1 PS पुणु जाणइ. 2 PS omit. 3 PS खय. 4 PS °वेल. 5A धूवंत. 6 PS कडदिय.7 PS पयहे.
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[१६] १ हस्तीषु रथेषु निश्चला(१). २ शब्दानुकरणे. ३ वक्रग्रीवा धावनशीलाच,
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