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५-८,१२,-१] उज्झाकण्ड-एगुणचालीसमो संधि [१४५ . कहाँ घरु कहाँ परियणु वन्धु-जणु कहाँ माय-वप्पु कहाँ सुहि-सयणु ॥ ४ कहाँ पुत्तु मित्तु कहाँ किर घरिणि कहाँ भाय सहोयर कहाँ वहिणि ॥ ५ फल जाव ताव वन्धव सयण आवासिय पायवे जिह सउण' ॥ ६. वलु एम भणेप्पिणु णीसरिउ रोवन्तु पडीवउ वीसरिउ ॥७
॥ घत्ता ॥ 'णिद्धणु लक्खण-वजियउ अण्णु वि वहु-वसणेहिँ भुत्तउ । राहउ भमइ भुअङ्गु जिह __ वर्ण 'हा हा सीय भणन्तउ ॥८
[१२] हिण्डन्तें भग्ग-मडप्फरेंण वण-देवय पुच्छिय हलहरेण ॥ १ 'खणे खणे वेयारहि काइँ मइँ कहें कहि मि दिट्ट जइ कन्त पइँ' ॥ २ ॥ वलु एम भणेप्पिणु संचलिउ तावग्गएँ वण-गइन्दु मिलिउ ॥ ३ 'हे कुञ्जर कामिणि-गइ-गमण कहें कहि मि दिट्ट जइ मिगणयण' ॥४ णिय-पडिरवेण वेयारियउ जाणइ सीयऍ हकारियउ॥ ५ कत्थइ दिट्ठ: इन्दीवर जाणइ धण-णयण दीहरइँ ॥ ६. कत्थइ असोय-तरु हल्लियउ।
जाणइ धण-वाहा-डोल्लियउ ॥ ७ ॥ वण सयल गवेसेंवि सयल महि पल्लट्ठ पडीवउ दासरहि ॥ ८
॥ घत्ता ॥ तं जि पराइउ णिय-भवणु जहिँ अच्छिउ आसि लयस्थले । चाव-सिलिम्मुंह-मुक्क-करु वलु पडिउ स इंभु व-मण्डले ॥ ९
11. 18 तरुवरि. 2 5 भुयंगु, A भुइंगु. 12. 1A एच भणेनि समुच्चलिउ. 2 P °दलु, 5 °दल. 3 P°डोलिअउं. 4 PS सिलीग्रह.
[११] १ वृक्षे. २ 'धण' भार्या, तस्या निःकान्तः.३ कामातुरः, विट इव...
स०प०च०१९
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