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________________ १४४] सयम्भुकिउ पउमचरिउ ९,१-८,१०,१-९,१११-१ [९] करें कङ्कणु जोवहिं दप्पणउ ॥ १ चउपह-संसारे भमन्तऍण आवन्ते जन्त-मरन्तऍण ॥ २ जगे जीवें कोण रुवावियउ को गरुअ धाह ण मुआवियउ ॥३ को कहि मि पाहिँ संतावियउ को कहि मि ण आवह पावियउ॥४ को कहिँ ण दड्ड को कहिँ ण मुउ को कहिँ ण भमिउ को कहिँ ण गउ ॥५ कहिँ ण वि भोयणु कहिँ ण वि सुरउ जग जीवहाँ किं पि ण वाहिरउ ॥६ तइलोक्कु वि असिउ असन्तऍण महि सयल दड्ड डझन्तऍण ॥ ७ ॥घत्ता ॥ सायर पीउ पियन्तऍण अंसुऍहिँ रुअन्तें भरियउ । हड्डु-कलेवर-संचऍण गिरि मेरु सो वि अन्तरियउ॥८ [१०] अहवइ किं वहु-चविएण राम भवे भमि भयङ्करें तुहु मि ताम ॥१ णडु जिह तिह वह-रूवन्तरहिँ जर-जम्मण-मरण-परम्परोहिं॥२ 15 सा सीय वि जोणि-सएहिँ आय तुहुँ कहि मि वप्पु सा कहि मि माय ॥ ३ तहँ कहि मि भाउ सा कहि मि वहिणि तहँ कहि मि दइउ सा कहि मि घरिणि॥४ तुहँ कहि मि णरऍ सा कहि मि सग्गें तुहँ कहि मि महिहिँ सा गयण-मगें ॥ ५ तुहँ कहि मि णारि सा कहि मि जोहु किं सिविणा-रिद्धिहें करहि मोहु ॥६ उम्मेदु 'विओअ-गइन्दएसु जगडन्तु भमइ जगु जिरवसेसु ॥७ 20 जइ ण धरिउ जिण-वयणकुसेण तो खजइ माणुसु माणुसेण ॥ ८ ॥घत्ता ॥ । एम भणेप्पिणु वे वि मुंणि गय कहि मि णहङ्गण-पन्थें । रामु परिट्ठिउ किविणु जिह धणु एक्कु लएवि स-हत्थें ॥ ९ [११] 23 विरहाणल-जाल-पलित्त-तणु चिन्तेवऍ लग्गु विसण्ण-मणु ॥ १ 'सच्चउ संसार ण अस्थि सुहु सच्चउ गिरि-मेरु-समाणु दुहु ॥२ सच्चउ जर-जम्मण-मरण-भउ सच्चउ जीविउ जल-विन्दु-सउ ॥३ 9. 1 PS A अप्पणउं. 2 A जोअहि दप्पणउं. 3 A भाविय उ. 4 P पावियउं. 5 P दुको. 6 PS रुयंतेहि. भरिउ. __10. 1 P भविउ, A भमिउं. 2 PS सुइणा. 3 A रिसि. [९] १ भक्षितः. २ भक्षितेन. [१०] १ पुरि(रु)षः. २ वियोग एव हस्ती. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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