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क०३, १-९,४,१-९]
उज्झाकण्ड-एगुणचालीसमो संधि [१४१ ।
[३] वलु एम भणेवि.पमुच्छियउ पुणु चारण-रिसिहिँ णियच्छियउ ॥ १ चारण वि होन्ति अट्ठविह-गुण जे णाण-पिण्ड सीलाहरण ॥२ - फल-फुल्ल-पत्त-णह-गिरि-गमण जल-तन्तुअ-जङ्घा-संचरण ॥ई तहिँ वीर सुधीर विसुद्ध-मण णह-चारण आइय वेणि जण ॥४ तें अवही-णाणे जोइयंत रामों कलत्तु विच्छोइयउ ॥ ५ आउरेंवि गल-गम्भीर-झुणि पुणु लग्गु चवेवऍ जेट्ट-मुणि ॥ ६ "भो चरम-देह सासय-गमण के कजें रोवहि मूढ-मण ॥७ तिय दुक्खहुँ खाणि विओय-णिहि तह कारणे रोवहि काइँ विहि ॥ ८
॥ धत्ता ॥ किं पइँ ण सुइय एह कह छज्जीव-णिकाय-दयावरु । जिह गुणवइ-अणुअत्तणेण जिणयासु जाउ वणे वाणरु' ॥९
[४] जं णिसुणिउ को वि चवन्तु णहें मुच्छा-विहलवलु धरणि-वहें ॥१ 'हा सीय' भणन्तु समुट्ठियउ चउ-दिसउ णियन्तु परिट्ठियउ ॥२ । णं करि करिणिहें विच्छोइयउ पुणु गयण-मग्गु अवलोइयउ ॥ ३ . तहिँ ताव णिहालिय विण्णि रिसि संगहिय जेहि परलोय-'किसि ॥४ ते गुरु गुरु-भत्ति करेवि थुर्य हो धम्म-विद्धि सिरि'-णमिय-भुय ॥५ गिरि-मेरु-समाणउ जेत्थु दुहु तहे कारण रोवहि काइँ तुहुँ॥६ खल तियमइ जेणं परिहरिय तहाँ णरय-महाणइ दुत्तरिय ॥ ७ रोवन्ति एम पर कप्पुरिस तिण-समु गणन्ति जे सप्पुरिस ॥८
॥ घत्ता ॥ तियमइ वाहिह अणुहरइ खण खण दुक्खन्ति ण थक्कइ । हम्मइ जिण-वयणोसहेण जे जम्म-सए वि ण दुक्का ॥९'
3. 1 P तंतुम वि जंघसंचारण. 2 A धीर. 3 P तं. 4 P जोइअउं. 5 धुणि. 6 P लग्ग चवे विवि, A चवेवइ. 7 किं,A के. 8 P A दुक्खहु. 9 A अणुत्तरेण. 10 A जिणदासु. .. 4. 1 A निसुणिउं. 2 A निएवि. 3 P करिणिहिं. 4 P आलोइयउ. 5A परमस्थ'. 6 P.थुव. 7A सिरे. 8 A समाणउं, 9 A तीमई. 100 जेहिं. 11 P रोमंति. 12 A °सयहो.
[३] १ कथा. [४] १ कृषि.
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