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ॐ० १४, ४ – ९, १५, १–९, १६, १ - ३ ]
उ तुम्हेंहिं रक्खि वर्त्तणु सच्चर चन्दु वि चन्द-गहिल्लउ वाउ वि चवलत्तण दमिज्जइ वरुणु वि होइ सहावें सीयलु इन्दु वि' इन्दवण रमिज्जइ
जाउ किं' जम्पिऍण राह इह भव
पुणु वि पलाउ करन्ति ण थक्कइ पावेण एण अवगणेंवि पुणु वि कलुणु कन्दन्ति पयट्टइ अह मइँ कवणु णेइ कन्दन्ती हा हा दसरह माम गुणोवहि हा अपराइऍ हा हा केकर हा सण भरह भर हेसर हा हा पुणु वि राम हा लक्खण
को संथवइ मइँ जहिं जहि जामि हउँ
सु-विउलऍ
अवसरें व अत्थि पचण्डु एकुं विज्जाहरु भामण्डलों चलिउ ओलग्गऍ
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[१४] [१५] १ अहं दुर्भागिनी. [१६] १ टे.
स० प० च० १८
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उज्झाकडं - भट्टतीसमो संधि [१३७ सूरहों तणउ. दिडु सूरतणु ॥ ४ वम्भु विसोत्ति हरु दुम्महिलउ ॥ ५ धम्मुवि रण्ड-सएहिँ लइज्जइ ॥ ६
सु कहि मि किं सङ्कइ पर वलु ॥ ७ को सुरवर सण्ठेहिं रक्खिज्जइ ॥ ८
॥ घत्ता ॥
जग अण्णु र्ण अभुद्धरणउ । पर-लोयहों जिणवरु संरणउ ॥ ९ [१५]
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'कुढे लग्गउ लग्गड जो सक्कइ ॥ १ णिय तिहुअणु अ मणूस मण्णेवि ॥ २ 'ऍहु अवसरु सप्पुरिसहों वट्टइ ॥ ३ लक्खण- राम वे वि जइ हुन्ती ॥ ४ हा हा जणय जणय अवलोयहि || ५ हा सुप्पहें सुमित्त सुन्दर-मइ ॥ ६ हा भामण्डल भाइ सहोयर ॥ ७ को सुमरामि कहाँ कहम अ-लक्खणं ॥ ८
॥ घन्ता ॥
कोहि कहाँ दुक्खु महन्त । तं तं जि पसु पलितं ॥ ९
[१६]
दाहिण लवण समुद्दों कूलऍ ॥ १
3PS तुम्हें. 4 P° गहिलउं 5P दुंमहिलउं, SA दुमहिलउ 64 वि पुणु इंदवहे. 7s किं पिजं येण. 8 P अण्णोष्ण, s अण्णोणं, 4 अण्णु न. 9Ps अब्भुद्धरणउं, 4 कोइ वि सरणउं. 10 A सरणु.
15.
1 A अहवइ . 2 A को 3P महंतउं. 4 P पलित्तउं.
वर- करवाल- हत्थु रणें दुद्धरु ॥ २ सुअ कन्दन्ति सीय तामग्गऍ ॥ ३
सूर्यस्य २ स्त्रीद्वय युक्तः ३ वरुणस्य.
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