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________________ कं. १९,५, १-६, ६, 1-6]. उज्झाकण्डं-छत्तीसमो संधि [११७ । ॥ घत्ता ॥ वुच्चइ राहवेण 'म एत्तिय मुहिवऍ' साडिय । असि" सावण्णु णवि पइँ जमहों जीह उप्पाडिय' ॥९ [५] जं एहिय भीसण वत्त सुय वेवन्ति पजम्पिय जणय-सुय ॥ १ ॥ 'लय-मण्डवें विउले णिविट्ठाहुँ सुहृ णाहि वणे वि पइट्ठाहुँ ॥२ परिभमइ जणदणु जहिँ जे जहि दिवेंदिवे कडमद्दणु तहिं जें तहिँ ॥ ३ .कर-चलण-देह-सिर-खण्डणहुँ । णिविण्ण माएँ हउँ भण्डणहुँ॥४ हउँ ताएं दिण्णी केहाहुँ कलि-काल-कियन्तहुँ जेहाहुँ' ॥५ तं वयणु सुणेप्पिणु भणइ हरि । 'जइ राजु ण पोरिसु होइ वैरि ॥ ६ ॥ जिम दाणे जेम सुकइत्तणेण जिम आउहेण जिम कित्तणेण ॥७ परिभमइ कित्ति सव्वहों णरहों धवलन्ति भुव॑णु जिह जिणवरहों ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ आयहुँ एत्तियहुँ जसु एक्कु वि चित्ते ण भावइ । सो जाउ जि मुउ परिमिसु जं जैमु णेवावई' ॥९. [६] एत्थन्तरें सुर-संतावणहों लहु वहिणि सहोयर रावणहों ॥१ ' पायाललङ्क-लकेसरहों धण पाण-पियारी तहों खरहों ॥२ चन्दणहि णाम रहसुच्छलिय णिय-पुत्तहों पासु समुच्चलिय ॥ ३ 'लइ वारह-वरिसइँ भरियाइँ चउ-दिवसेंहिँ पुणु सोत्तरिया ॥ ४ ॥ अण्णहिँ तहिं दिवसहिँ करें चडइ तं खग्गु अन्जु णहें णिबडई'॥५ सो एव चवन्ती महुर-सर वैलि-दीवङ्गारय-गहिय-कर ॥ ६ .. सजण-मण-णयणाणन्दणों गय पासु पत्त णिय-णन्दणहों ॥७ ताणन्तरें असि-दलंवट्टियउ वंसत्थलु दिट्ट णिवंट्टियउ ॥ ८ - 9 मुहिवइ. 10 P असावण्णु. .5. 1A एही. 2 5 लइ. 3 PA सुहं. 4 s णस्थे. 5 S A सिरि. 6P खंडणह, खंडणहो. 7 P महाए, s माइ. 8 s कियंतहो जेहाहो. 9 P S A वरे. 10 P A भुमणु. 11 P A आयहु, S आयहो. 12 एत्तियहो. 13 s जेयु, A जसु (?). . 6. 14 वारहो. 2 PA °वंगारए गहिअ. 3 PS लवट्टिअउ, A दलवभिउं. 4 PA णिवभि, s णिवहिपउ. [४] १ एवमेव खण्डिता. [५] १ संग्रामस्य. [६] १ नैवेद्य-दीप-धूपादयः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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