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________________ . 10 ११०] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क०६,१-९६७, ५-७,८,१ [६] खेण-सद्देण णिरुत्तर जायउ पुणु वि पवोलिउ दण्डय-रायउ ॥ १ "तो घंइँ सबु अस्थि जं दीसइ . पुणु तवचरणु कासु किजेसई" ॥२ तं णिसुणेप्पिणु भणइ मुणीसरु जो कइ-गवय वीइ वाईसरु ॥ ३ 5 "अम्हइँ राय ण वोलहुँ एवं णेआइऍहिँ हसिज्जहुँ जेवं ॥ ४ अस्थि णत्थि दोणि वि पंडिवजहुँ तुहुँ जिह णउ खणवाएं भज्जहुँ" ॥ ५ . तं णिसुणेवि भणइ देणुदारउ "जाणित परम-पक्खु तुम्हारउ ॥ ६ अस्थि ण अस्थि णिच्च-"संदेहो पुणु धवलउ पुणु सामल-देहो ॥७ पुणु" वि मत्त-करि पुणु पञ्चाणणु खत्तिउ वइसु सुदु पुणु वम्भणु” ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ भणिउ भडारउ "किं वित्थारें एक चोर चिरु धरिउ तलारें। गीवा-मुह-णासच्छि गविट्ठउ सीसु लएन्तहुँ कहि मि ण दिट्ठउ ॥ ९ [७] अहवइ एण काइँ संदेहें अत्थि वि णस्थि वि णीसंदेहे ॥१ 1. जेत्थु अस्थि तहिँ अस्थि भणेवउ जहिँ ण अत्थि तहिँ णत्थि भणेवउ" ॥२ सच्छन्देण णराहिउ भाविउ लइउ धम्मु पुणु मुणि पाराविउ ॥ ३ साहुहुँ पञ्च सयइँ धरियाई णिसुअइँ तेसहि वि चरियाई ॥ ४ तो एत्थन्तर जण-मण-भाविणि कुइय खणखें दुण्णय-सामिणि ॥ ५ पुणु मयवद्धणु पुत्तु महन्तउ "णरवइ जाउ जिणेसर-भत्तउ ॥ ६ ॥ घत्ता ॥ तो वरि मन्तु किं पि मन्तिजइ जिणहरे सव्वु दव्वु पुञ्जिजाइ । जेण गवेसण पहु कारावइ . साहुहुँ पञ्च-सयइँ मारावइ" ॥ ७ [८] एक्क-दिवसें तं तेम कराविउ जिणहरे सव्वु दव्वु पुञ्जाविउ ॥ १ - 6. 1 PS खणे, 2 Ps पइ. 3 P marginally corrects as सत्तु. 4 P अच्छि . 5 P°कवय corrected as वय, s कवय. 6 A omits. 7 A अम्हहं. 8 s येव, A एम. 9 Pणेआइंयहुँ, s जेआइयहु. 10-जेव, A जेम. 11 A वस्थि. 12 PA °संदेहु. 13 P SA °देहु. 14 A पुणु मत्तउ. 7. 1 P सुअस्थि. 2 A नवच्छि. [६] १ अंगीकुरुथ (?). २ राजा. ३ राज्ञा मुनिरुक्तः. • [७] १ मुनि उवाच. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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