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________________ १०८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क० १, ९,२,१-९,३,१-९ ॥ घत्ता ॥ अण्ण-सुवण्ण-कण्ण-गोदाणहुँ मेइणि-मणि-सिद्धन्त-पुराणहूँ । सव्वहुँ अण्ण-दाणु उच्चासणु पर-सासणहुँ जेम जिण-सासणु ॥९ [२] दाण-रिद्धि पेक्खेवि खगेसरु __णवर जडाइ जाउ जाईसरु ॥१ गग्गर-वयणउ भुणि-अणुराएं पहउ णाइँ सिरे मोग्गर-घाएं ॥२ जिह जिह सुमरइ णियय-भवन्तरु तिह लिह मेल्लइ अंसु णिरन्तर ॥ ३ 'म' पावेग तिलोयाणन्दहुँ पञ्च-सयइँ पीलियइँ मुणिन्दहुँ' ॥४ एम पलाउ करन्तु विहङ्गाउ गुरु-चलणेहिँ पडिउ मुच्छंगउ ॥ ५ पय-पक्खालण-जलेंणासासिउ राहवचन्दं पुणु उर्वयासिउ ॥६ सीयऍ वुत्तु 'पुत्तु महु एवहिँ छुडु वद्धउ छुडु धरउ सुखेवेहि ॥७ ताव रयण-उजोवें भिण्णा जाय पक्ख चामीयर-वण्णा ॥८ ॥ घत्ता ।। विदुम-चञ्चु णील-णिह-कण्ठउ पय-वेरुलिय-वण्ण मणि-पट्टउ । 1 तक्खणे पञ्च-वण्णु णिव्वडियउ वीयउ रयण-पुञ्ज णं पडियउ ॥ ९ [३] भावें विहि मि पयाहिण देन्तउ णडु जिह हरिस-विसाऍहिँ जन्तउ ॥१ दिदु पक्खि ज णयणाणन्दणु भणइ णवेप्पिणु दसरह-णन्दणु ॥ २ 'हे मुणिवर गयणङ्गण-गामिय चउगइ-दुक्ख-महाणइ-णामिय ॥ ३ 20 कहि कजेण केण सच्छायउ पक्खि सुवण्ण-वण्णु जं जायउ' ॥ ४ तं णिसुणेवि वुत्तु णीसङ्गे 'सयलु वि उत्तिम-पुरिस-पसङ्गे ॥५ णरु हलुवो वि होइ गरुआरउ रुक्खु वि सेल-सिहर वड्डारउ ॥ ६ मेरु-णियव तिणु वि हेमुज्जलु सिप्पिउडेसु जलु वि मुत्ताहलु ॥७ तिह विहङ्गु मणि-रयणुज्जोएं जाउ सुवण्ण-वण्णु मुणि-तोएं' ॥८ ॥ घत्ता ॥ तं णिसुणेवि वयणु असंगाहें पुच्छिउ पुणु वि णाहु णरणाहें । 'विहलवलु घुम्मन्तु विहङ्गाउ कवणे कारणेण मुच्छंगउ' ॥९ 9 s A °मुणि. 10 P S°सुइसिद्धंत. P glosses सुइ as स्मृति. 2. 1 SA °वयणलं. 2 A करेवि. 3 PS मंभीसिउ. 4 PS बहुउ, A वट्टर. 5 PS सुखेमेहिं. 6 P ओजोएं, S इंजोयं. 7 PS °कंठउ.8 P णिव्व डिअउं. 9A घडियउ. 3. 1 P जंतउं, 2 PS पंखि. 3 P जायउं. 4 S अवगाहें. 5 P कवण, कवण वि. * [३] १ नौका, नामिता वा. २ मुनि-गन्धोदकेन. ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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