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क. १, ३, १-८२, १-९,३, १-४] . उज्झाकण्डं-चउतीसमो संधि [१०१ फलु काइँ जीवं मम्भीसियएँ परहण परदारें अहिंसियएँ ॥३ काई फलु सच्चें वोल्लिऍण अलिअक्षरेण आमेल्लिऍण ॥४ काई फलु जिणवर-अश्चियएँ वर-विउले घरासमें वश्चियऍ॥५ काई फलु भासें छण्डिऍण रत्तिद्दिउ देहें दैण्डिऍण ॥ ६ काई फलं जिण-संमजणेण वलि-दीवङ्गार-विलेवणेण ॥७
॥ घत्ता॥ किं चारित्ते णाणे वऍ दसणे, अण्णु पसंसिऍ जिणवर-सासणे । जं फलु होइ अणङ्ग-वियारा तं विण्णासेंवि कहहि भडारा' ॥ ८
. [२] पुणु पुणु वि पडीवउ भणइ वलु 'कहें सुक्किय-दुक्किय-कम्म-फलु ॥ १ ॥ कम्मेण केण रिउ-डमर-कर सयरायर महि भुञ्जन्ति णर ॥२ कम्मेण केण पर-चक-धर रह-तुरय-गऍहिँ वुज्झन्ति णर ॥ ३ परियरिय सु-णारिहिँ णरवरेंहिँ । विजिजमाण वर-चामरेंहिँ ॥ ४ सुन्दर सच्छन्द मइन्द जिह जोहेंहिँ जोह बुज्झन्ति किह ॥ ५ कम्मेण केण किय पङ्गुलंय जर कुण्ट मण्ट वहिरन्धलय ॥ ६. . काणीण दीण-मुह-काय-सर वाहिल भिल्ल णाहल सवर ॥ ७ दालिदिय पर-पेसणइँ कर . के कम्में उप्पज्जन्ति णर ॥८
॥ धत्ता ॥ 'धीर-सरीर वीर तव-सूरा सब्वहुँ जीवहुँ आसाऊरा । इन्दिय-पंसवण पर-उवयारा ते कहिँ णर पावन्ति भडारा ॥ ९ ॥
के वि अण्ण णर दुह-परिचत्ता देवलोएँ देवत्तणु पत्ता ॥ १ चन्दाइच्च-राहु-अङ्गारा
अण्णहों अण्ण होन्ति कम्मारा ॥ २ हंस-स-मेस-महिस-विस-कुञ्जर मोर-तुरङ्ग-रिच्छ-मिग-सम्बर ।।३।। जइ देवहुँ जे मज्झै संभूआ तो किं कजें वाहण हूआ ॥४ 8 P जीवे. 9s परहणु. 10 PS परदार. 11 A अधिएण. 12 A वंचिएण. 13 Ps इंडिएण. 14 P कायह, S कायई.
2. 1 Ps किउ. 2 P A पंगुलाय, S पंगुलया. 3. 1 PS A देवलोइ. [१] १ अभयकृते. २ अना(न )भिलषिते. ३ मानेन. ४ नैवेद्यैः, ५ ज्ञानेन ज्ञात्वा कथय. [२] १ दृढवपुः. २ प्रशमनाः. ३ कां गतिं प्राप्नुवंति. [३] १ मंगल.
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