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क०१४, १-९;१, १-८]
उज्झाकण्डं-तेत्तीसमो संधि [९३ .
[१४] जिणवर-चलण-कमल-दल-सेवहिँ केवल-णाण-पुज किय देवहि ॥ १ भणइ पुरन्दरु 'अहाँ अहों लोयहाँ जइ सङ्किय जर-मरण-विओयहाँ ॥ २ . जइ णिबिण्णा चउ-गइ-गमणहों तो कि ण ढक्कहाँ जिणवर-भवणों ॥३ पुत्तु कत्तु जावं मणे चिन्तहों जिणवर-विम्वु ताव कि ण चिन्तहों ॥४ चिन्तहों जाव मासु मयरासणु कि ण चिन्तवाँ ताव जिणसासणु ॥५ चिन्तहों जाव रिद्धि सिय सम्पय कि ण चिन्तवहाँ ताव जिणवर-पय ॥६ चिन्तहों जाव रूउ धणु जोवणु धण्णु सुवण्णु अण्णु घर परियणु ॥७ चिन्तहों जाव वलिउ भुव-पञ्जर कि ण चिन्तवहाँ ताव परमक्खरु ॥८
॥ पत्ता ॥ पेक्खड्डु धम्म-फलु
चउरङ्ग-वलु पयहिण ति-वार देवाविउ । स इँ भु वणेसरहों परमेसरहाँ अत्थक्कएँ सेव कराविउ' ॥९
[३३. तेत्तीसमो संधि] उप्पणऍ णाणे पुच्छइ रहु-तणंउ । 'कुलभूसण-देव किं उवसग्गु कउ'॥
[१] तं णिसुणेवि पभणइ परम-गुरु 'सुणु जक्खथाणु णामेण पुरु ॥ १ तहिँ कासव-सुरवं महाभविय ऐयारह-गुणथाणविय ॥२ एक्कोवर किङ्कर पुरवइहें णं तुम्वुरु-णारय सुरवइहें ॥३ हम्मन्तु विहङ्गमु लुद्धऍहिँ परिरक्खिउ तेहिँ पवुद्धऍहिँ ॥
४ ० खगवइ पुणे वहुकालेण मुउ विज्झाचलें भिल्लाहिवइ हुउ ॥५ तो कासव सुरव वे वि मरेवि थिय अमियसरहों घरे ओअरेवि ॥ ६ उवओवादेविहे दोहलॅहिँ उप्पण्णा वड्डुहिँ सोहॅलेंहिँ ॥७ वद्धावउ आयउ वन्धुजणु किउ उइय-मुइय णामैग्गहणु ॥८ ___ 14. 1 A देवहो. 2 P किर. 3 Ps °चलणहो. 4 P S जेम. 5 P S A मणि. 6 A अण्ण.
1. 1 P S णाणे. 2 P S तणउं. 3 Ps किं तउ. 4 Ps किउ. 3s पुरव, A सुरय. 6 A गुग्घविय, 7 P A पूवुद्धिएहिं. 8 A बहुकालंतरंग. 9 P उववाएं, s उववायं. A 10 P देविहि, s देविहि, A एवेहिं. 11 P उहअउ. 12 P णामगहणु. [१४] सेवकैः. २.भुजापञ्जरबलं. ३ वारंवार, आकस्मिकेन. . [१] १. कर्षक-सूरपौ भ्रातरौ. २ एकादश-प्रतिमा-युक्ताः. ३ पंक्षी. ४ पंक्षी. ५ अमृतसर-दूतस्य. ६ उपयोगा (१) अमृतसरस्य स्त्री. ७ उत्सवैः. ८ उदित-मुदित-नामानौ.
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