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[क०३, १३, ४, १-११, १२, १-५
८८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
। ॥घत्ता॥ तहिँ तेहऍ संइलें तरुवर-वहले जाणइ-विजुलऍ धवलुज्जलगू
आरूढ वे वि हरि-हलहर । चिञ्चइय णाइँणव जलहर ॥१३
• पिहुल-णियम्व-विम्व-रमणीयहें राहउ दुम दरिसाक्इ सीयहें ॥५१
ऍहु सो 'धणे णग्गोह-पहाणु जहिँ रिसहहाँ उप्पण्णंउ णाणु ॥ २ ऍहु सो सत्तवन्तु किं न मुणिउ अजिउ स-णाण-देहु जहिँ पंथुणिउँ ॥३ ऍहु सो इन्दवच्छ सुपसिद्धउ जहिँ संभव-जिणु णाण-समिद्धउ ॥ ४ ऍहु सो सरलु सहलु संभूअउ अहिणन्दणु स-णाणु जहिँ हूअउ ॥५ ऍहु पीयङ्गु सीऍ सच्छायउ सुमइ स-णाणपिण्डु जहिँ जायउ ॥ ६ ऍहु सो सालु सीऍ णियच्छिउ पउमप्पहु स-णाणु जहिँ अच्छिउ ॥ ७ ऍहु सो सिरिसु महद्दुमु जाणइ णाणु सुपासें भणेवि जगु जाणइ ॥८ ऍहु सो णागरुक्खु चन्दप्पहें णाणुप्पत्ति जेत्थु चन्दप्पहें ॥ ९ ऍहु सो मालइरुक्खु पदीसिउ पुप्फयन्तु जहिँ णाण-विहूसिउ ॥ १०
॥ घत्ता ॥ ऍहु सो पक्खंतर फल-फुल्ल-भरु तेन्दुइ-समाणु दुह-णासहुँ । हिँ परिहूयाइँ संभूयाइँ णाणइँ सीयल-सेयंसहुँ॥११
[५] ऍह सा पोडलि सुहल सुपत्ती वासुपु जहिँ णाणुप्पत्ती ॥ १ "ऍसु सो 'जम्बू एह 'असत्थु विमलाणन्तहूँ णाण-समत्थु ॥२
उहु दहिवण्ण-णन्दि सुपसिद्धा धम्म-सन्ति जहिं णाण-समिद्धा ॥ ३ उहु साहार-तिलउ दीसन्ति कुन्थु-अरहुँ जहिँ णाणुप्पत्ति ॥ ४ ऍहु सो तरु कङ्केल्लि-पहाणु मल्लिजिणहों जहिँ केवल-णाणु ॥ ५ ऍहु सो चम्पउ किष्ण णियच्छिउ मुणि सुव्वउ स-णाणु जहिँ अच्छिउ ॥६ 10A चेवाय.
4. 1 P रमणीयहो, s रमणीयहिं. 2 5 सीयहिं, A सीयहो. 3 A नग्गोहु. 4 A उप्पण्णउं. 5 Ps क्रिन्न. 6 PA पथुणिउं, S एस्थुणिउं. 7 PS णाणु. 8 5 सहल, A सुहलु. 9 P संभूअउं, A संभूयउ. 10 चंदप्पहु, s चंदप्पहो. 11 Ps चंदप्पहो. 12 SA जक्खतरु. 13 तिंदुइ, A तंदुइ. 14 s जिह. 15 A सई भूक्ष.
5. 1 PS पाडल. 2 A भासत्थु. 3 5 साहारं. ६ पर्वते. ७ मंडितः.
[४] १ हे सीते. २ प्रकर्षण स्तवितः. ३ हे जानकी सीते. ४ प्लक्ष: ५ संभूतानि. [५]१ जामुणि. २ पीपलः. ३ अशोकः,
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