________________
क०९,१-९,१०,१-९]
उज्झाकण्डं-तीसमो संघि [७७'
- [९]
जं एव वुत्तु वैणियांयणेण पहु पभणिउ दसरह-णन्दणेण ॥ १ 'जइ भरहहाँ होहि सुमिच्चु अज्जु तो अजु वि लइ अप्पणउ रज्जु' ॥२ तं वयणु सुणेवि परलोय-भीर विहसेप्पिणु भणइ अणन्तवीर ॥३ 'पांडेवउ चो चलणहिँ णिच्चु । तहों केम पडीवउ होमि भिच्चु ॥ ४ वलिमण्डऍ.तव-चरणेण जो वि पाडेवउ पाहिँ भरहु तो वि' ॥ ५ तं वयणु सुणेप्पिणु तुडु रामु 'सच्चउ जें तुज्झु अइवीरु णामु ॥ ६ पुणरुत्तेहि वुच्चइ साहु साहु' हकारिउ तहों सुउ सहसवाहु ॥ ७ सो णिय संताणहों रइउ राउ अण्णु वि भरहहाँ पाइक्कु जाउ ॥ ८
॥ घत्ता ॥ रिउ मेल्लेप्पिणु दस वि जण गय तुट्ठ-मण णिय-णयरु पराइय जाहिँ । . णन्दावत्त-णराहिवइजिणें करेंवि मइ दिक्खहँ समुट्ठिउ ताहिँ ॥९
[१०] एत्थन्तरे पुर-परमेसराहँ दिक्खाएँ समुट्ठिउ सउ णराहँ ॥ १ सहूल-विउल-वरवीरभद मुणिभद्द-सुभद्द-समन्तभद ॥२ गरुडद्धय-मयरद्धय-पचण्ड चन्दण-चन्दोयर-मारिचण्ड ॥ ३ . जयघण्ट-महद्धय-चन्द-सूर जय-विजय-अजय-दुजय-कुकूर ॥४ इय एत्तिय पहु पव्वइय तेत्थु लाहण-पव्वऍ जय-णन्दि जेत्थु ॥५ थिय पञ्च मुट्टि 'सिरे लोउ देवि सइँ वाहहिँ आहरणइँ मुवि ॥ ६ णीसङ्ग वि थिय रिसि-सङ्घ-सहिय संसार वि भव-संसार-रहिय ॥ ७ ॥ णिम्माण वि जीव-सयहुँ समाण णिग्गन्थ वि गन्ध-पयत्थ-जाण ॥ ८ •.
॥ घत्ता ॥ इय एकेक-पहाण रिसि भैव-तिमिर-ससि तव-सूर महावय-धारा । छट्टम-दर्स-वारसेंहिँ वहु-उर्ववसेंहि अप्पाणु खवन्ति भडारा ॥ ९
9. 1 अप्पणउं. 2 P वलिमंडइ, SA वलिवंडह. 3 Ps मेल्लेवि. 4 P करवि corrected as करइ, 8 करिवि, A करइ. 5 P दिक्खहि, s दिक्खादि.
10. 1 समुवटिउ, PSA सिरि. 3 P भाराहणई, A आहरणाई. 4 P marginally corrents as मुणेवि5 P corrects as °सयलहुं. 6 A तम° 7 PS °दसमदुवालसेहिं. 8P8 °उववासेहिं S खति.
[९] १ वनिताजनेन. २ नित्यमेव. ३ अनन्तवीर्यः, ४ पुनरुक्तिभिः युक्त्या (?). ५ अनन्तवीर्यः ।
Jain Education International
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
www.jainelibrary.om