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________________ ७६] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [क०७, १-९,6, 1-९ [७] राहवचन्दु मणेण ण कम्पिउ पुणु पुणरत्तेहिँ एव पजम्पिउ ॥ १ 'भो भो णरवइ भरहु णमन्तहुँ कवणु पराहउ किर अणुणन्तहुँ ॥ २ जो पर-वल समुद्दे महणीयइ जो पर-वल-'मियङ्के गैहणायइ ॥ ३ जो पर-वल-गयणेंहिँ चन्दायइ जो पर-वल-गइन्हें सीहाय ॥४ जो पर-वल-रयणिहिँ हंसायइ जो पर-वल-तुरङ्गे महिसायइ ॥ ५ जो पर-वल-भुयॉ गरुडायइ जो पर-वल-वैणोहें जलणायइ ॥ ६ जो पर-वल-घणोहें पवणायइ जो पर-वल-पवणोहें धरायइ ॥ ७ जो पर-वल-धरोहें वज्जायई' ॥८ ॥ घत्ता ।। तं णिसुणेवि विरुद्धऍण मणे कुद्धऍण अइवीरें अहर-फुरन्तै । रत्तुप्पल-दल-लोयणेण जग-भोयणेण णं किउ अवलोउ कियन्ते ॥ ९ [८] भय-भीसणु अमरिस-कुइय-देहु गजन्तु समुट्ठिउ जेम मेहु ॥ १ 15 करें असिवरु लेइ ण लेइ जाम णहें उड्डेवि रामें धरिउ ताम ॥२ सिर पाउ देवि चोरु व णिवद्धणं वारण वारि-णिवन्धे छद्ध ॥३ रिउ चम्पेवि पर-वल-मइयवद्दु जिण-भवणहों सम्मुहु वलु पयट्ट ॥४ एत्थन्तर महुमहणेण वुत्तु । 'जो ढुक्कइ तं मारमि णिरुत्तु' ॥५ तं सुणेवि परोप्पर रिउ चवन्ति किं एय परकम तियहँ होन्ति' ॥६ 20 एत्तडिय वोल्ल पडिवक्खें जाम पर दस वि जिणालउ पत्त ताम॥७ जे गिलिय आसि पुर-रक्खसेण णं मुक पडीवा भय-वसेण ॥८ ॥ घत्ता ॥ तावन्तेउरु विमण-मणु गय-गइ-गमणु वहु-हार-दोरै-खुप्पन्तउ । --भायउँ पासु जियाहवहों तहों राहवीं 'दे दईय-भिक्ख' मग्गन्तउ ॥९ 'T. 1 Ps कवण. 2 P अणुअंतहु, SA अगुणंतहु. 3 Mostly in P and occasionally in s this and similar other verb forms end in og or o. 4 PS A मियंक. 5 Missing in A. 6 PS जलणायए. 8. 1 P A सम्मुहुं. 2 A तियहु. 3 P notes a variant 'ते'. 4 Ps 'डोर'. 5 Ps खुप्पंतउं. 6 PS आइउ पासि. [७] १ सेवयंतः. २ मेरु-मन्थनकमिवात्मानमाचरति. ३ राहुवदाचरति. ४ सिंहवदाचरति. ५ सूर्वायते. ६ महिषायते. ७ वनसमूहे. ८ अग्न्यायते. ९ पर्वतायते. १० पर्वतसमूहे वलायते. [८] १ वारण पाली कृत्वा तटाक-जल इव बद्धः. २ भर्तार. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002524
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages370
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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