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क१,१-९, २, १-१०]
उज्झाकण्ड-तीसमो संधि [७३
[३०. तीसमो संधि तहि अवसर आणन्द-भरे उच्छाह-करें जयकारों कारण णिकिउ। भरहहों उप्परि उचलिउ रहसुच्छलिउ णरुणन्दावत्त-णराहिउ ॥
[१] जो भरहहाँ दूउ विसर्जियउ आइउ सम्माण-विवजियउ ॥१ लहु-णन्दावत्त-णराहिवहाँ वज्जरिउ अणन्तवीर-णिवहाँ ॥२ 'हउँ पेक्खु केम विच्छारियउ सिर मुंण्डेंवि कह वि* ण मारियउ ॥३ सो भरहु ण इच्छइ सन्धि रणे जं जाणहों तं चिन्तवहाँ मणे ॥४ अण्णु वि उक्खन्धे आइयउ सहुँ सेण्णे विञ्झु पराइयउ ॥५ तहिँ णरवइ वालिखिल्लू वलिउ सीहोयर वज्जयण्णु मिलिउ॥६ तहिँ रुद्दभुत्ति सिरिवच्छ-धरु मरुभुत्ति सुभुत्ति विभुत्ति-कर ॥७ अवरेहि मि समउँ समावडिउ पेक्खेसहि कल्लऍ अभिडिउ' ॥८
॥ घत्ता
॥
ताम अणन्तवीरु खुहिउ पइजारुहिउ 'जइ कल्लऍ भरहु ण मारमि । तो अरहन्त-भडाराहों सुर-सौराहों उचलण-जुअलु जयकारमि' ॥९॥
पइजारूढु णराहिउ जाहिँ साहणु मिलिउ असेसु वि ताहिँ ॥१ लेहु लिहेप्पिणु जग-विक्खायहाँ तुरिउ विसजिउ महिहर-रायहाँ ॥२ अग्गएँ घित्तु वद्ध लम्पिक्कु व हरिणक्खरहिँ लीणु णण्डिक्कु व ॥३ सुन्दरु पत्तवन्तु वर-साह व णाव-वहुलु सरि-गङ्गा-पवाह व ॥४ ॥ दिट्ठ राय तर्हि आय अणन्त वि सल्ल-विसल्ल-सीहविक्कन्त वि ॥५ दुजय-अजय-विजय-जय-जयमुह परसइँल-विउल-गय-गयमुह ॥६ रुद्दवच्छ-महिवच्छ-महद्धय चन्दण-चन्दोयर-गरुडद्धय ॥ ७ केसरि-मारिचण्ड-जमघण्टा कोङ्कण-मलय-पण्डियाणट्टा ॥८ गुजर-गग-वङ्ग-मनाला
पइविय-पारियत्त-पश्चाला ॥९ सिन्धव-कामरूव-गम्भीरा तजिय-पारसीय-परतीरा ॥ १०
1. 1 PS A गंदावत्तु. 2 8 विसजिभउं. 3 A मुंडिउ. 4 PS व. 5A मारियउं. 6 सम. 7 P विभिडिउ, विभिडिउ. 8 P नावमि.9 PS भडारहो. 10 P S °सारहो.
2. 1 PS A वड. हरिणखुरेहिं. 3 P S लीण. 4 A गंडिक्खु. 5 PS पत्तुवंतु. 6A नंदण. 7. P S केसर. कन्हीरा. .
[१] १ निःमः कृतघ्नेश्व. २ नन्दावर्त-नगर-खामी, अनन्तवीर्यः. ३ उपरि वैरेण. [२] १ और इव. २ व्याधो यथा हरित-श्वेत-मृगचर्मेण, पत्रं हरित-श्वेताक्षरैः. ३ लेखेन उका:. :
. स. प. च०१०
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