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क०८, १-९, ९, १-९]
उज्झाकण्ड-तीसमो संघि [७१ .
[८] तो एत्यन्तरे भुवणाणन्दें दिदु जणद्दणु राहवचन्दें ॥१ णावइ त दीवय-सिह-सहियउ णावइ जलहरु विजु-पगहियउ ॥२ पावइ करि करिणि आसत्तउ चलणेहि पडिउ वलहाँ स-कलत्तउ ॥ ३ 'चारु चारु भो णयणाणन्दण कहिँ पइँ कण्ण लद्ध रिउमद्दण' ॥४ । वुशु कुमार 'विज व सगुणिय धरणीधरहों धीय किं ण मुणिय ॥ ५ जा महु पुवयंण्ण-उवदिट्ठी सा वणमाल एह वणे दिट्ठी'॥ ६ हरि अप्फालइ जाव कहाणउ ताम रत्ति गय विमलु विहाणउ ॥ ७ सुहड विउद्ध कुद्ध जस-लुद्धा "केण वि लइय कण्ण' सण्णद्धा ॥ ८
॥ घत्ता ॥ ताव णिहालिय दुजऍहिँ पुणु रह-गऍहिँ चाउदिसु चवल-तुरङ्गेहिं । वेढिय रणउहें वे वि जण वल-महुमहण पञ्चाणण जेम कुरङ्गैहिँ ॥९
[९] अभिट्ट सेण्णु कलयलु करन्तु "जिह लइय कण्ण तिह हणु' भणन्तु ॥१ तं वयणु सुणेप्पिणु हरि पलित्तु उद्धाइउ सिहि णं घिऍण सित्तु ॥२ एकल्लउ लक्खणु वलु अणन्तु आलग्गु तो वि तिण-समु गणन्तु ॥ ३ परिसक्का थक्कइ चलइ वलइ तरुवर उम्मूलेवि सेण्णु दलइ॥४ उधंडइ भिडइ पाडइ तुरङ्ग महि कमइ भमइ भामइ रहन ॥५ अवगाहइ साहइ धरइ जोह दलवट्टइ लोट्टइ गयवरोह ॥ ६ विणिवाइय घाइय सुहड-थट्ट कडुआविय विवरामुह पयट्ट ॥७ णासन्ति के वि जे समर चुक्क कायर-णर-कर-पहरण मुक्त ॥८
॥ घत्ता ॥ गम्पिणु कहिउ महीहरहों 'एक्कहों परहों आवट्ट सेण्णु भुव-दण्डएँ । जिम णासहि जिम भिडु समरे विहिँ एक्कु करें वणमाल लइय वलिमण्डएँ' ॥९
8. 1 P करिणिहिं, किरिणिहि. 2 Ps विजु व सुगुणिय. 3 Ps कि. 4 A पुव्वहन. 5 A मई. 6 P S उपलिइ. 7 P SA कहाणउं. 8 A रयणि. 9 P SA विहाणउं. 10 Ps चउदिसु.
9. 1A राकइ. 2 A आवडइ. A विणिवायह घायह. 4 A पहरणकारविमुक.. BA बलिवंडए.
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