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भर्तृहरिकृत-शतकत्रयम् बहुत सरल, सुबोध एवं सुगम्य पद्धतिसे लिखी गई है। इससे खल्पसंस्कृतज्ञ पढने वालोंको भी भर्तृहरिकी उत्तम उक्तियोंका अच्छी तरह आकलन हो सकेगा।
प्रो० कोसंबी एक सुप्रसिद्ध गणितविद्यापारंगत विद्वान् हैं । गणितशास्त्र ही इनका मुख्य अध्ययन और लेखनका विषय है । बंबईके टाटा फण्डामेंटल रीसर्च इन्स्टीट्यूह जैसे एक विशिष्ट और प्रतिष्ठित संस्थानमें प्रधान गणिताध्यापकका कार्य करते हुए उस विषयमें विशेषरूपसे ये अपने मौलिक संशोधन कर रहे हैं । तथापि इनका संस्कृत साहित्यके संशोधनसंपादन कार्यमें भी ऐसा ही प्रच्छन्न उत्साह और उद्योग चालू है यह देख कर मुझे अधिक आनन्द और आह्लाद उत्पन्न हो रहा है । यद्यपि मैं इनकी बाल्यावस्थासे ही इनके एक बड़ा बुद्धिमान् और प्रतिभासंपन्न ऐसे गणितज्ञ होनेकी कल्पना कर रहा था, परंतु संस्कृत साहित्यके प्रदेशमें, ये अपने जगप्रसिद्ध पालीपण्डित पिता, श्री धर्मानन्द कोसंबीसे भी अग्रगामी बननेका प्रयत्न करेंगे-ऐसी तो मुझे कल्पना भी नहीं हो सकी थी। यह मुझे तब मालूम हुआ जब पिछले वर्ष मेरे श्रद्धेय मित्र श्री धर्मानन्दजीने आ कर मुझसे कहा कि-"बाबा पिछले ३-४ वर्षोंसे भर्तृहरिके शतकत्रयकी एक विशिष्ठ 'क्रिटीकल टेक्ष' तैयार कर रहा है और उसके साथ ही उसकी कुछ अप्रसिद्ध टीकायें भी संपादित कर प्रकाशित करना चाहता है। यदि आप अपनी ग्रन्थमालामें उनको प्रकाशित करें तो बहुत उपयुक्त कार्य होगा । इत्यादि ।" मैंने बड़े उत्साहसे उनके कथनको तत्काल खीकार किया और प्रिय बाबाको म्येनुस्क्रीप्ट भेज देनेको लिखा । उसका प्रथम फल यह आज विद्वानोंके हाथमें है। इन्होंने भर्तृहरिके मूल ग्रन्थका जो क्रिटीकल संस्करण संपादित किया है वह इसके बाद प्रकट होनेके लिये प्रेसमें दिया जा चुका है। आशा है शीघ्र ही पाठकोंके हाथमें वह ग्रन्थ भी उपलब्ध होगा।
श्रावणी पूर्णिमा वि. सं. २००२ (ई. स. १९४६) भाण्डारकर रीसर्च इन्स्टीट्यूट
पूना
मुनि जिनविजय
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