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________________ ३३ ___ गाथा पत्र ५७५०-६१ बृहत्कल्पसूत्र पंचम विभागनो विपयानुक्रम । विषय अधिकरणनी-केशनी शान्ति न करता स्वगणने तजी अन्य गणमां जनार भिक्षु, उपाध्याय, आचार्य आदिने आश्री प्रायश्चित्तनो विभाग अने तेने लगतुं एक शाहुकारनी चार पत्नीनुं उदाहरण क्लेशने कारणे गच्छनो त्याग न करतां क्लेशयुक्त चित्ते गच्छमां वसनार भिक्षु, उपाध्याय, आचार्य आदिने शान्त करवानो विधि, शान्त नहि थनारने लगता प्रायश्चित्तो, दोषो, अपवाद आदि [गाथा ५७८०-कुमारदृष्टान्त ] १५१५-१८ ५७६२-८३ १५१८-२३ ५७८४-५८२८ संस्तृतनिर्विचिकित्सप्रकृत सू०६-९ १५२४-३७ सशक्त के अशक्त भिक्षु, आचार्य, उपाध्याय आदि सूर्यना उदय अने नहि आथमवा माटे निःशंक होई आहार करता होय अने पछी सूर्य उग्यो नथी के आथमी गयो छे एम खबर पडतां आहारनो त्याग करे तो तेमनी रात्रिभोजनविरति अखंडित रहे छे; पण सूर्यनो उदय थवा छतां अने नहि आथमवा छतां जो ते माटे शंकाशील होई आहार करे तो तेमनी रात्रिभोजनविरति खंडित थाय छे ५७८४ संस्तृतनिर्विचिकित्सप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे संबंध १५२५ ६-९ संस्तृतनिर्विचिकित्स आदि सूत्रोनी व्याख्या १५२५-२६ ५७८५-५८१४ ६ संस्तृतनिर्विचिकित्ससूत्रनी विस्तृत व्याख्या १५२६-३३ ५७८५-८७ संस्तृतनिर्विचिकित्ससूत्रोनो विषय अने तेने आश्री काल, द्रव्य अने भावथी प्रायश्चित्तनी मार्गणा १५२६ ५७८८-५८०६ उद्गतवृत्ति, अनुद्गतवृत्ति अने अनस्तमित, अस्तमित पदोनी व्याख्या, तेने आश्री संकल्प, गवेषणा, प्रहण अने भोजन ए चार पदो वडे षोडशभंगी, घटमान भांगाओनी सोळ लताओ, आठ शुद्ध For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002514
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages340
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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