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बृहत्कल्पसूत्र पंचम विभागनो विषयानुक्रम ।
गाथा
पत्र
विषय कालधर्मगत साधुना परठवेला मृतदेहनी अखंडता
आदि उपरथी निमित्त, गति वगैरेनी परीक्षा ५५५९-६५ कालधर्मगत साधुने लगतो विधि नहि करवाथी
लागतां प्रायश्चित्त, दोपो अने प्रस्तुत सूत्रनो समन्वय । १४७१-७२ ५५६६–९३ . अधिकरणप्रकृत सूत्र ३०
भिक्षुए गृहस्थनी साथे अधिकरण-झघडो को होय तेने शमाव्या सिवाय ते भिक्षुने भिक्षाचर्या वगेरे
कशुं करवू कल्पे नहि इत्यादि ५५६६ अधिकरणप्रकृतनो पूर्वप्रकृत साथे सम्बन्ध
१४७३ ___ अधिकरणसूत्रनी व्याख्या
१४७४ ५५६७-७२ भिक्षुने गृहस्थनी साथे क्लेश थवानां कारणो, ते केशने शान्त नहि करवाथी थतां नुकशानो
१४७४-७५ ५५७३-८० झघडेला भिक्षु अने गृहस्थने शान्त पाडवानी रीत १४७५-७७ ५५८१-८९ झघडो करीने शान्त नहि थनार भिक्षु, आचार्य,
___ उपाध्याय, गणावच्छेदकने लगतां प्रायश्चित्तो : १४७७-७९ ५५९०-९१ पक्षपाती ओछंवत्तुं प्रायश्चित्त आपवाथी दोषो
१४७९ ५५९२-९३ अधिकरणने लगतुं अपवादपद
१४७९-८० ५५९४-५६१७ परिहारिकप्रकृत सूत्र ३१ १४८०-८६
परिहारकल्पस्थित भिक्षुने आचार्य-उपाध्याय इन्द्रमह जेवा उत्सवने दिवसे विपुल भक्तपानादि अपावी शके, ते पछी आपी-अपावी शके नहि. तेनी
कोइ पण प्रकारनी वेयावच्च करी करावी शके इत्यादि ५५९४-९५ परिहारिकप्रकृतनो पूर्वप्रकृत साथे सम्बन्ध
१४८१ - परिहारिकसूचनी व्याख्या
१४८१ परिहारतपप्रायश्चित्त लागवानां कारणो
१४८१ ५५९७ परिहारतपनो विधि
१४८२ ५५९८-५६१७ परिहारकल्पिकसूत्रना अंशोनी व्याख्या
१४८२-८६ परिहारकल्पिक अने गच्छवासीओनो पारस्परिक व्यवहार अने तेने लगतां प्रायश्चित्त आदि
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