SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० बृहत्कल्पसूत्र पंचम विभागनो विषयानुक्रम । गाथा पत्र विषय कालधर्मगत साधुना परठवेला मृतदेहनी अखंडता आदि उपरथी निमित्त, गति वगैरेनी परीक्षा ५५५९-६५ कालधर्मगत साधुने लगतो विधि नहि करवाथी लागतां प्रायश्चित्त, दोपो अने प्रस्तुत सूत्रनो समन्वय । १४७१-७२ ५५६६–९३ . अधिकरणप्रकृत सूत्र ३० भिक्षुए गृहस्थनी साथे अधिकरण-झघडो को होय तेने शमाव्या सिवाय ते भिक्षुने भिक्षाचर्या वगेरे कशुं करवू कल्पे नहि इत्यादि ५५६६ अधिकरणप्रकृतनो पूर्वप्रकृत साथे सम्बन्ध १४७३ ___ अधिकरणसूत्रनी व्याख्या १४७४ ५५६७-७२ भिक्षुने गृहस्थनी साथे क्लेश थवानां कारणो, ते केशने शान्त नहि करवाथी थतां नुकशानो १४७४-७५ ५५७३-८० झघडेला भिक्षु अने गृहस्थने शान्त पाडवानी रीत १४७५-७७ ५५८१-८९ झघडो करीने शान्त नहि थनार भिक्षु, आचार्य, ___ उपाध्याय, गणावच्छेदकने लगतां प्रायश्चित्तो : १४७७-७९ ५५९०-९१ पक्षपाती ओछंवत्तुं प्रायश्चित्त आपवाथी दोषो १४७९ ५५९२-९३ अधिकरणने लगतुं अपवादपद १४७९-८० ५५९४-५६१७ परिहारिकप्रकृत सूत्र ३१ १४८०-८६ परिहारकल्पस्थित भिक्षुने आचार्य-उपाध्याय इन्द्रमह जेवा उत्सवने दिवसे विपुल भक्तपानादि अपावी शके, ते पछी आपी-अपावी शके नहि. तेनी कोइ पण प्रकारनी वेयावच्च करी करावी शके इत्यादि ५५९४-९५ परिहारिकप्रकृतनो पूर्वप्रकृत साथे सम्बन्ध १४८१ - परिहारिकसूचनी व्याख्या १४८१ परिहारतपप्रायश्चित्त लागवानां कारणो १४८१ ५५९७ परिहारतपनो विधि १४८२ ५५९८-५६१७ परिहारकल्पिकसूत्रना अंशोनी व्याख्या १४८२-८६ परिहारकल्पिक अने गच्छवासीओनो पारस्परिक व्यवहार अने तेने लगतां प्रायश्चित्त आदि For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002514
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages340
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy