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________________ २४ बृहत्कल्पसूत्र पंचम विभागनो विषयानुक्रम । गाथा पत्र विषय भिक्षा लावनार ते गाममां ज आहारादि करी ले तो शुं हरकत छे तेने लगतुं वादस्थळ १४०९-११ ५३१५-३० अनेषणीयप्रकृत सूत्र १८ १४१२-१७ भिक्षाचर्यामां श्रमणे अजाणपणे अनेषणीय स्निग्ध अशनादि उत्कृष्ट अचित्त द्रव्य लीधुं होय तो ते अनुपस्थापित श्रमणने आपी देवं अने जो तेवो श्रमण न होय तो तेनो प्राशुक भूमीमां विवेक करवो ५३१५-१६ अनेषणीयप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध १४१२ अनेषणीयसूत्रनी व्याख्या १४१२ ५३१७-३८ अनुपस्थापित शिष्यने अनेषणीय भक्त आदि आप वाने लगती यतनाओ, अयतनाथी आपवामां दोप आदिनुं वर्णन तेम ज तेने समजाववाना प्रकारादि । १४१३-१७ ५३३९-६१ कल्पस्थिताकल्पस्थितप्रकृत सूत्र १९ १४१७-२४ कल्पस्थित अकल्पस्थित श्रमणोने एक वीजाना निमित्ते तैयार थएल कल्पनीय अकल्पनीय पिण्डनुं स्वरूप कल्पस्थिताकल्पस्थितप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध १४१७ कल्पस्थिताकल्पस्थितसूत्रनी व्याख्या ५३४० कल्पस्थित अकल्पस्थितनुं स्वरूप अने तेमनां महा. व्रतोनी संख्या १४१८ ५३४१-५० पभ-महावीर अने वावीस तीर्थंकरना कल्पस्थित अकल्पस्थित श्रमण-श्रमणीओ, तेमना उपाश्रयो, समुदाय, संघ आदिने उद्देशीने करेल आधाकर्मादि पिण्डनो कल्प्याकल्प्य विभाग १४१८-२० ५३५१-५८ चोवीस तीर्थकरना श्रमण-श्रमणीओना कल्पस्थित अकल्पस्थित तरीकेना विभागर्नु कारण समजाववामाटे तेमना ऋजु-जड, ऋजु-प्राज्ञ अने वत्र जडपणानुं वर्णन अने नटप्रेक्षणक दृष्टान्त १४२१-२३ ५३५९-६१ कल्पस्थित अकल्पस्थितने आश्री आधाकर्मादिना ग्रहणने लगतो अपवाद १४२३-२४ ५३३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002514
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages340
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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