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बृहत्कल्पसूत्र पंचम विभागनो विषयानुक्रम ।
गाथा
पत्र
विषय भिक्षा लावनार ते गाममां ज आहारादि करी ले तो शुं हरकत छे तेने लगतुं वादस्थळ
१४०९-११ ५३१५-३० अनेषणीयप्रकृत सूत्र १८
१४१२-१७ भिक्षाचर्यामां श्रमणे अजाणपणे अनेषणीय स्निग्ध अशनादि उत्कृष्ट अचित्त द्रव्य लीधुं होय तो ते अनुपस्थापित श्रमणने आपी देवं अने जो तेवो
श्रमण न होय तो तेनो प्राशुक भूमीमां विवेक करवो ५३१५-१६ अनेषणीयप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध
१४१२ अनेषणीयसूत्रनी व्याख्या
१४१२ ५३१७-३८ अनुपस्थापित शिष्यने अनेषणीय भक्त आदि आप
वाने लगती यतनाओ, अयतनाथी आपवामां दोप
आदिनुं वर्णन तेम ज तेने समजाववाना प्रकारादि । १४१३-१७ ५३३९-६१ कल्पस्थिताकल्पस्थितप्रकृत सूत्र १९ १४१७-२४
कल्पस्थित अकल्पस्थित श्रमणोने एक वीजाना निमित्ते तैयार थएल कल्पनीय अकल्पनीय पिण्डनुं स्वरूप कल्पस्थिताकल्पस्थितप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध १४१७
कल्पस्थिताकल्पस्थितसूत्रनी व्याख्या ५३४० कल्पस्थित अकल्पस्थितनुं स्वरूप अने तेमनां महा. व्रतोनी संख्या
१४१८ ५३४१-५० पभ-महावीर अने वावीस तीर्थंकरना कल्पस्थित
अकल्पस्थित श्रमण-श्रमणीओ, तेमना उपाश्रयो, समुदाय, संघ आदिने उद्देशीने करेल आधाकर्मादि पिण्डनो कल्प्याकल्प्य विभाग
१४१८-२० ५३५१-५८ चोवीस तीर्थकरना श्रमण-श्रमणीओना कल्पस्थित
अकल्पस्थित तरीकेना विभागर्नु कारण समजाववामाटे तेमना ऋजु-जड, ऋजु-प्राज्ञ अने वत्र
जडपणानुं वर्णन अने नटप्रेक्षणक दृष्टान्त १४२१-२३ ५३५९-६१ कल्पस्थित अकल्पस्थितने आश्री आधाकर्मादिना ग्रहणने लगतो अपवाद
१४२३-२४
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