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________________ ५३६२ गाथा विषय पत्र ५३६२ - ५४९६ गणान्तरोपसम्पत्प्रकृत सूत्र २० - २८ १४२४ - ५ ५३६२-५४४९ २० भिक्षुविषयक गणान्तरोपसम्पत्सूत्र कोई पण निर्ग्रन्थने ज्ञानादिना कारणे वीजा गणमां उपसंपदा लेवी होय तो आचार्य, उपाध्यायादिने पूछतां तेओ सम्मति आपे तो ज तेम थइ शके गणान्तरोपसम्पत्प्रकृतनो पूर्व सूत्र साथै सम्बन्ध भिक्षुविषयक गणान्तरोपसम्पत्सूत्रनी व्याख्या उपसम्पदानुं खरूप ज्ञान- दर्शन - चारित्रनी वृद्धि निमित्ते गणान्तरोपसम्पदानो स्वीकार, तेना १ भीत २ चिन्तयन् ३ जिकादि ४ संखडी ५ पिशुकादि ६ अप्रतिषेधक ( प्रतिषेधक ) ७ पर्षद्वान् ८ गुरुप्रेषित ए आठ अतिचारो, तेने लगतां प्रायश्चित्तो अने आठ अतिचारोनुं स्वरूप ५३६३-५४४९ ५३६३-७७ ५३७८-७९ ५३८०-८५ ५३८६ - ९४ ५३९५-९६ 蝌 बृहत्कल्पसूत्र पंचम विभागनो विषय कम Jain Education International जे भिक्षु fिrontरण प्रतिषेधकादि पासे उपसंपदा स्वीकारे तेने लगतो विधि अप्रतिषेधक, पर्षद्वान् अने प्रतीच्छकने लगतो अपवाद व्यक्त अव्यक्त शिष्यनुं स्वरूप अने तेमने उपसंपदा लेवामाटे वीजा साधु साथे मोकलवामां आवे त्यारे प्रतीच्छनीय आचार्य अने मूलाचार्यने लगता आभाव्य अनाभाव्यनो विभाग आचार्य, उपाध्याय आदिनी अनुमति सिवाय उपसंपदा स्वीकारनार शिष्य अने प्रतीच्छक आचार्यने प्रायश्चित्त अने आज्ञा नहि आपवानां कारणो १ ज्ञानोपसम्पदानो विधि ५३९७–५४२४ ५३९७-५४०३ उपसंपदा स्वीकारवा पहेलां आज्ञा मेळववा माटे आचार्य, उपाध्याय अनेने पृछवानो विधि For Private & Personal Use Only TUTMOS १४२४-१४४४ १४२४ १४२५ १४२५-४७ १४२५-१८ १४२८ १४२९-३० १४३०-३२ १४३२-३३ १४३३-३३ www.jainelibrary.org
SR No.002514
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages340
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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