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गाथा
५२६४-८६
५२६४-६९
५२७०-७४
५२७५-८३
५२८४-८६
५२८७-५३१४
५२८७-८८
५२८९-९१
५३०२-१४
बृहत्कल्पसूत्र पंचम विभागनो विषयानुक्रम ।
विषय
१६-१७ काल क्षेत्रातिक्रान्त सूत्रोनी
व्याख्या
१६ कालातिक्रान्तसूत्रनी विस्तृत व्याख्या जिनकल्पिकने लक्षीने कालातिक्रान्त अशना दिनुं स्वरूप, तेनी मर्यादा, प्रायश्चित्तो अने दोषो स्थविरकल्पिकोने लक्षीने कालातिक्रान्त अशनादिनुं स्वरूप, तेनी मर्यादा, तेटला काळ सुधी अशनादि राखी मूकवानां कारणो अने तेने लगती यतनाओ भक्त पानादिने राखी मूकवामां जेम दोषो छे तेम तेने लाववामां पण अनेक दोषो छे माटे कोइए खावुं ज नहि ए प्रकारनुं शिष्यनुं कथन अने ते सामे आचार्यनो प्रतिवाद
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अशनादि कालातिक्रान्त थवानां कारणो अने तेने अंगे अपवाद
५२९२-५३०१ स्थविरकल्पिको पोताना मर्यादित क्षेत्र पैकीनां दूरनां गामोमांथी भिक्षा आदि लावे तेथी थता — क्षेत्ररक्षा, गुरु-बाल-वृद्ध-ग्लान-तपस्वि - प्राघूर्णक आदि निमित्ते भिक्षानी तेम ज तेमने योग्य दूध दहि घी आदि उपयोगी द्रव्योनी सुलभता, उद्गमादि दोषोनी शुद्धि, बहुमान आदि गुणो अने ते विषे अगारीनुं अर्थात् कृपण वाणीआनी स्त्रीनुं तथा बदरीनुंबोरडीनुं दृष्टान्त
१७ क्षेत्रातिक्रान्तसूत्रनी विस्तृत व्याख्या क्षेत्रातिक्रान्तनी मर्यादा, तद्विषयक प्रायश्चित्त अने दोषोनुं स्वरूप
जिनकल्पिक अने स्थविरकल्पिकने पोतपोताना मर्यादित क्षेत्रमा क्षेत्रातिक्रान्तने लगता दोषो लागवा छतां मनुं निर्दोषप
दूरनां गामोमां भूख्या भूख्या भिक्षामाटे जतुं तेम ज भिक्षा लइने आवं इत्यादि उपाधि करवा करत
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पत्र
१४००
१४००-५
१४००-२
१४०२-३
१४०३-४
१४०४-५
१४०५-११
१४०५
१४०६
१४०६-९
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