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________________ बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम गाथा विषय पत्र ४७८९-९४ ४७८९ २९ पांचमुं अवग्रहसूत्र पांचमा अवग्रहसूत्रनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध पांचमा अवग्रहसूत्रनी व्याख्या पांचमा अवग्रहसूत्रगत कुड्डु, भित्ति, चरिया, परिखा वगेरे पदोनी व्याख्या आदि १२८६-८७ १२८६ १२८६ ४७९०-९४ १२८६-८७ १२८७-९८ १२८८ १२८८ १२८८ ४७९५-४८३९ सेनाप्रकृत सूत्र ३० निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओए गाम, नगर आदिनी बहार सेनानो पडाव पड्यो होय तो ते ज दिवसे बीजा गामथी भिक्षाचर्या लइने पाछा आवq जोइए ४७९५ सेनाप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध ३० सेनासूत्रनी व्याख्या ४७९६-९७ निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओ परचक्र, अशिव, अवमौदर्य, बोधिकस्तेनभय आदिनी संभावना होय तेवां क्षेत्रोमांथी पहेलेथी नीकळी न जाय तेने लगतां प्रायश्चित्तो अने दोषो ४७९८-४८०० परचक्रागमनने जाणवानी रीतो अने ते प्रसंगे नहि नीकळी शकावानां कारणो ४८०१-९ १ संवर्त्तद्वार परचक्रागमन प्रसंगे नहि नीकळी शकवाने कारणे संवर्त्तमां वसता निर्ग्रन्थ-निर्घन्धीओने लगती यतनाओगें भिक्षा, भक्तार्थना अने वसति ए त्रण द्वार वडे निरूपण ४८१०-३९ २ नगररोधकद्वार परचक्रागमन प्रसंगे नहि नीकळी शकवाने कारणे नगररोधकमा अर्थात् लश्करी घेरामां सपडाइ गएला निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने भिक्षादिमाटे जवाने लगती यतनाओनुं वसति, भक्तार्थना, स्थण्डिल, शरीरविवेचन अने भिक्षा ए पांच द्वारवडे निरूपण १२८९ १२८९-९१ १२९१-९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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