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________________ ५२ गाथा ४८४० - ७६ ४८४० ४८४१-४५ ४८४६-५० ४८५१-५२ ४८५३-५८ ४८५९ - ७६ Jain Education International बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम | विषय अवग्रहप्रमाणप्रकृत सूत्र ३१ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने चोमेर सवा योजननो अवग्रह लइने गाम नगर आदिमां रहे कल्पे अवग्रहप्रमाणप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध अवग्रहप्रमाणसूत्रनी व्याख्या सव्याघात अने निर्व्याघात क्षेत्रविषयक अवग्रहनुं प्रमाण अने सक्रोशपदनी व्याख्या सर्वसाधारण क्षेत्रमां क्षेत्रिक अने अक्षेत्रिकविषयक आभाव्य - अनाभाव्यनो विभाग अने जे क्षेत्रमां दरेक रीते निर्वाह पामता क्षेत्रिको बीजाने वस्त्र वगेरे न आपे अथवा दरेक प्रकारे निर्वाह पामता अक्षेत्रिको बलात्कारे क्षेत्रिकना क्षेत्रमां दाखल थइ वस्त्रादि ग्रहण करे तेने लगतां प्रायश्चित्त आदि वृषभप्रामोने लगता अवग्रहनुं प्रमाण अने वृषभग्रामोनुं स्वरूप अचल ऐन्द्र क्षेत्र अने तद्विषयक अवग्रहनुं प्रमाण चल क्षेत्रना व्रजिका, सार्थ, सेना अने संवर्त्त ए चार प्रकारो, तेनुं स्वरूप अने तेने लगता अवमहनी मर्यादा For Private & Personal Use Only पत्र १२९८ - १३०६ १२९८ १२९८ १२९९ १३००-१ १३०१ १३०२-३ १३०३-६ www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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