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________________ धृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम ! ४५ गाथा पत्र विषय आवतो अने जेमनी साथे वैकल्पिक रीते करवामां आवे छे तेमनुं वर्णन, तेने लगतो अपवाद, अजापाल वाचकनुं दृष्टान्त, पुष्टालम्बने पार्श्वस्थादिने वन्दनक नहि करवाथी लागतां प्रायश्चित्तो अपवादपदे पुष्टालंबने केवा प्रकारना पार्श्वस्थादि साथे कयां स्थानोमां केवी रीतनो अभ्युत्थान अने वन्दनकनो व्यवहार राखवो तेनुं अने ते रीते नहि करवाने लगता दोषादिनुं निरूपण १२२४-२६ ४५४१-५३ १२२६-२९ १२३०-३३ १२३० ४५५४-६५ ___ अन्तरगृहस्थानादिप्रकृत सूत्र १९ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने घरनी अंदर अथवा वे घरना वचमा रहेवू, वेसवु, सुवु आदि कल्पे नहि, पण कोई रोगी वृद्ध तपस्वी आदि मूर्छित थइ जाय के पडी जाय वगेरे प्रसंगे रहे, बेसबु, सुवु आदि कल्पे ४५५४ अन्तरगृहस्थानादिप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध १९ अन्तरगृहस्थानादिसूत्रनी व्याख्या । ४५५५-५७ अन्तरगृहनी व्याख्या, त्यां रहेवाने लगतां प्राय श्चित्तो अने दोषो ४५५८ अन्तरगृहमा नहि रहे वाने लगता अपवादो ४५५९-६५ प्रकारान्तरे अन्तरगृहमा नहि रहेवाने लगता अप वादोनुं १ औषध २ संखडी ३ संघाटक ४ वर्षा ५ प्रत्यनीक ए पांच द्वारो वडे निरूपण अने तेने लगती यतनाओ १२३० १२३०-३१ १२३१ १२३१-३३ ४५६६-९७ अन्तरगृहाख्यानादिप्रकृत सूत्र २०-२१ २० अन्तरगृहगाथाद्याख्यानादिसूत्र निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने अन्तरगृहमां चार के पांच गाथाओर्नु आख्यान-कीर्तनादि कल्पे नहि, पण १२३३-४१ १२३३-३९ ४५६६-८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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