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गाथा
४४९६-९९
४५००-२
४५०३-८
४५०९-१४
४५१५
४५१६-२०
४५२१-२३
४५२४-३२
४५३२-४०
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बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागंनो विषयानुक्रम ।
विषय
आचार्यादिने कृतिकर्म करवानो विधि, विधिनो विपर्यास करनारने प्रायश्चित्त अने आचरणानुं स्वरूप आचार्यथी जे पर्यायज्येष्ठ होय तेमणे आचार्यने वन्दन कर के नहि तेनो विधि अने आचार्यना रत्नाधिकोनुं स्वरूप
कृतिकर्म कोने कर अथवा कोने न करवुं तेनुं स्वरूप, श्रेणिस्थितोने वन्दन करवानो विधि, व्यवः हारथी श्रेणिस्थितोने वंदन अने व्यवहारनय करतां निश्वयनयनी सविशेष प्रामाणिकतानुं स्थापन
संयमश्रेणिनुं स्वरूप
संयमना अविभागपलिच्छेदो, स्थानो, कण्डको, षट्स्थानो, अधः स्थान, पर्यवसान, वृद्धि अने अल्पबहुत्वनी प्ररूपणा
जीवप्ररूपणा साथै सम्बन्ध धरावतां आलाप, गणना, विरहित, अविरहित, स्पर्शना, गणनापद, श्रेण्यपहार, भाग, अल्पबहुत्व अने समय ए पदोनी प्ररूपणाना गुरुगमनो अभाव संयमणिनो वन्दक साथ सम्बन्ध श्रेणिबाह्यस्थितनी ओळख, तेने लग जाए नोकरोने साचववामाटे सोंपेला बे शर्कराक्कुटोनुं - बे साकरना भरेला घडानुं दृष्टान्त अने तेनो उपनय मूळ गुणप्रतिसेवी अने उत्तरगुणप्रतिसेवी तत्काळ अने काळान्तरे केवी रीते भ्रष्ट थाय छे ते समजाववामाटे सङ्कर-कचरो सर्ववशकट, सर्वपमंडप, तैलभावित वस्त्र अने मरुकनां दृष्टान्तो
पार्श्वस्थ आदि वन्दन कर के नहि ? ते विषेनी व्यवस्था, संयमवृद्धि आदि पुटालम्बने वन्दनकनी अनुज्ञा अने ते विषे धनिकर्तुं टान्त संयमश्रेणिस्थानमा रहेला छतां जेमनी साथे वन्दनकने लगतो व्यवहार नियमे करवामां नथी
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पत्र
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