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गाथा
बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । विषय
पत्र करवाथी लागता दोषो, प्रायश्चित्तो अने अभ्युत्थानथी थता लाभो
११९८-९९ ४४४३-४६ आचार्य फरता होय, प्रस्रवणभूमि अने विचार
भूमीथी आवता होय, साधु संयती श्रावक अन्यतीर्थिक श्राविका अन्यतीर्थिकी वादि अमात्य संघ अने राजा पैकी कोइनी साथे बहारथी आवता होय ते वखते तेमनुं अभ्युत्थान नहि करवाने लगतां प्रायश्चित्तो अने तेनां कारणो
११९९-१२०० ४४४७-५८ आचार्य चंक्रमण करता होय त्यारे शामाटे उठवू
जोइये तेने लगतुं शिष्याचार्यतुं चार्चिक, समितिवाळो नियमे गुप्तिमान् होय छे अने गुप्तिमान समितपणामां भजनीय छे, समिति-गुप्तिनो परस्पर समवतार, आचार्यना चंक्रमण- सार्थकपणुं, आचार्यना चंक्रमण प्रसंगे अभ्युत्थान नहि करवाथी थता
दोषोने समजाववा माटे भद्रकभोजिकनुं दृष्टान्त ४४५९-६४ आचार्य-उपाध्यायादिनुं अभ्युत्थान नहि करनारने
सावचेत नहि करनार वृषभोने प्रायश्चित्त अने तेथी थता दोषो
१२०४-५ ४४६५-६६ आचार्यादितुं अभ्युत्थान नहि करनारने प्रकारान्तरे प्रायश्चित्त
१२०५-६ ४४६७-४६५३ वन्दनकृतिकर्मनुं सरूप
१२०६-२१ ४४६७-६९ दैवसिक रात्रिक पाक्षिकादि प्रतिक्रमणमा आचार्य
उपाध्यायादि वंदनक न करे, वन्दनको लगता पदोने न पाळे तेमज देवसिक-रात्रिक प्रतिक्रमणमा
वन्दनक ओछां वत्ता करे तेने लगतां प्रायश्चित्तो १२०६ ४४७०-९५ वन्दनकविषयक पदो
१९०७-१३ ४४७० वन्दनकविषयक पचीस आवश्यको ४४७१-९५ वन्दनकविषयक अनाहत, स्तब्ध, प्रवृद्ध, परि
पिण्डित, टोलगति, अंकुश आदि वत्रीस दोषो, तेनुं स्वरूप अने तद्विपयक प्रायश्चित्तो
१२०७-१३
१२००-४
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