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________________ गाथा ११८१ बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । विषय १७ यथारत्नाधिकशय्यासंस्तारक परिभाजनसूत्रनी व्याख्या ४३६८ शय्या अने संस्तार पदनी व्याख्या अने तेना ग्रह णादिनो समय ४३६९-४४१३ यथारत्नाधिक शय्या एटले वसति अने संस्तारक एटले संथारानी जग्या लेवानो विधि, तेने लगती यतनाओ, अपवाद वगेरेनुं विस्तृत स्वरूप ११८१ ११८१-९२ ४४१४-४५५३ कृतिकर्मप्रकृत सूत्र १८ १९९२-१२२८ निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने यथारत्नाधिक ज कृतिकर्म करवं कल्पे ४४१४ कृतिकर्मप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध ११९२ १८ कृतिकर्मसूत्रनी व्याख्या १९९२ ४४१५ कृतिकर्मना अभ्युत्थान अने वन्दनक ए वे प्रकारो ११९२ ४४१६-६७ ___ अभ्युत्थानकृतिकर्मनुं स्वरूप ११९३-१२०६ ४४१६-२० निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने पार्श्वस्थादि, अन्यतीर्थिक, गृहस्थ, यथाच्छंद, अन्यतीर्थिनी अने संयतीवर्गअभ्युत्थान करवाथी लागतां प्रायश्चित्तो अने संभवता दोषोनुं वर्णन ११९३-९४ आचार्य उपाध्याय भिक्षु अने क्षुल्लक प्राघूर्णक तरीके आवता आचार्यादिनुं अभ्युत्थान न करे तेने लगतां प्रायश्चित्तो ११९४-९६ ४४३०-३६ प्राघूर्णक आचार्यादिनुं अभ्युत्थान नहि करवामां कोइ पण जातनी आत्मविराधना के संयमविराधना जेवू नहि छतां प्रायश्चित्त आपवानुं कारण, तेने अंगे यक्षरकर्नु-दासनुं दृष्टान्त अने तेना अप्रशस्त प्रशस्त उपनयो ११९६-९७ ४४३७-४२ स्वगच्छीय आचार्य- सूत्रपौरुषी पात्रलेप प्रति. लेखना आदि करतां अथवा ग्लानपणाने लीधे के भक्तप्रत्याख्यान करवाने लीधे अभ्युत्थान नहि ४४२१-२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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