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________________ बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । गाथा विषय ४३३३-४६ ४३४७-५२ ११७६-७७ १ सचित्तग्रहण- स्वरूप पाणी, आग, चोर, दुर्भिक्ष, महारण्य, ग्लान, श्वापद आदि आगाढ कारणप्रसंगे आचार्य उपाध्याय भिक्षु क्षुल्लक अने स्थविर ए पांच निर्ग्रन्थो तथा प्रवर्तिनी उपाध्याया स्थविरा भिक्षुणी अने क्षुल्लिका ए पांच निर्ग्रन्थीओ पैकी कोने कये क्रमे बचाववा तेने लगतो विधि अने ए क्रमने अंगे शिष्याचार्यनां शंका-समाधानो २ मिश्रग्रहण- स्वरूप आचार्य उपाध्याय आदि निर्ग्रन्थो अने प्रवर्तिनी, उपाध्याया आदि निर्ग्रन्थीओ आ उभयपक्ष एकी साथे पाणी आग चोर दुर्भिक्ष आदिना उपद्रवमा सपडाया होय त्यारे तेमने पार उतारवाने लगतो क्रम अने विधि ३ अचित्तग्रहणनो विधि वस्त्रपात्रादिविषयक अभिनवग्रहणनुं अने उपस्थापनाग्रहण अने उपस्थापितग्रहण ए बे प्रकारना पुराणग्रहण- स्वरूप सचित्त अचित्त अने मिश्रग्रहणना विधिमां क्षपक साधुए दर्शावेल क्रममां लुब्धसाधुए दर्शावेली खामी अने अभिनवसचित्तग्रहणना ४८ भेदोनी पूर्ति ४३५३-६० ११७७-७९ ४३६१-६६ ११७९-८० ११८१-९२ ४३६७-४४१३ यथारत्नाधिकशय्यासंस्तारक परिभाजनप्रकृत सूत्र १७ निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने यथारनाधिक शय्या अने संस्तारक लेवा कल्पे यथारत्नाधिकशय्यासंस्तारकपरिभाजनप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध ११८१ १ आ ठेकाणे मूळमां यथारत्नाधिकशय्यासंस्तारकग्रहणप्रकृतम् छपायुं छे तेने बदले यथारनाधिकशय्यासंस्तारकपरिभाजनप्रकृतम् समजवु ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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