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________________ ४६ बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । गाथा पत्र ४५६६ १२३३ १२३३ ४५६७ १२३४ ४५६८-७५ १२३४-३६ १२३६-३७ ४५७६-८३ ४५८४-८६ विषय एक ज्ञात, एक श्लोक के एक गाथादिनुं कथन आदि उभा उभा करवू कल्पे अन्तरगृहाख्यानादिप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध अन्तरगृहगाथाद्याख्यानादिसूत्रनी.व्याख्या आख्यान, विभावना, कीर्तना अने प्रवेदनपदनी व्याख्या भिक्षाए गएला निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओ गाथादिनु आख्यान वगेरे करे तेने लगता दोषोनुं वर्णन, प्रायश्चित्त अने अपवाद 'एकज्ञातेन'पदनी व्याख्या अने उदकनुं दृष्टान्त 'एकव्याकरणेन, एकगाथया, एकश्लोकेन'पदोनी व्याख्या उभा उभा धर्मकथा करवानुं कारण अने धर्मकथानुं स्वरूप २१ अन्तरगृहमहाव्रताख्यानादिसूत्र निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने अन्तरगृहमां पंचमहाव्रतोतुं आख्यान विभावन आदि करवं कल्पे नहि. एक ज्ञात एक श्लोकादिनु आख्यानादि करवू कल्पे, ते पण उभा अन्तरगृहमहाव्रताख्यानादिसूत्रनी व्याख्या प्रस्तुत सूत्रनो वीसमा सुत्रमा समावेश थतो होवा छतां आ सूत्रनी रचनानुं कारण अन्तरगृहमां महाव्रतोतुं आख्यानादि करवाथी संभवता दोषो अने तेने लगतो अपवाद १२३७-३८ ४५८७-८९ ४५९०-९७ १२३८-३९ १२३९-४१ १२३९ ४५९० १२३९ ४५९१-९७ १२४०-४१ ४५९८-४६४९ . शय्यासंस्तारकप्रकृत सूत्र २२-२४ १२४२-५३ ४५९८-४६०९ २२ पहेलं शय्यासंस्तारकसूत्र १२४२-४४ निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने प्रातिहारिक-उछीना मागीने आणेला नाना मोटा संथाराओ मालीकने सोप्या सिवाय बीजे विहरवं कल्पे नहि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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