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________________ गाथा ४१४८-८८ ४१४८-५० निश्राप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध ४१५१-५२ ४१५३-५८ ४१५९-८८ हत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम | विषय निश्राप्रकृत सूत्र १२ भिक्षामादे गएली निर्ग्रन्धीए वस्त्र लेवुं होय तो प्रवर्त्तिनीनी निश्राए लेवुं. जो साथै प्रवर्त्तिनी न होय तो ते क्षेत्रमां आचार्य वगेरे जे होय तेमनी निश्रा करीने लेवं Jain Education International १२ निश्रासूत्रनी व्याख्या निश्रासूत्र आचार्य प्रवर्त्तिनीने, प्रवर्त्तिनी भिक्षुणीओने न समजावे तेने लगतां प्रायश्चित्तो निर्मन्थीओने प्रवर्त्तिनीआदिनी निश्राए वस्त्रादि नहि लेवाथी लागता दोषोनुं १ मिध्यात्व २ शंकादि ३ विराधना ४ लोभ ५ अभियोग ६ गौरव ७ भंडन ८ अस्थानस्थापन ए आठ द्वारोथी वर्णन निश्रासूत्रनी सफलता, तेने लगतो अपवाद, निर्मन्थीओए कारणसर वस्त्र लेवानो विधि, वेमणे आला वस्त्रोनी परीक्षा अने तेना संस्कारनो विधि, भद्रक अने अभद्रक दाता पासेथी वस्त्र लेवानो विधि, आचार्य उपाध्याय प्रवर्त्तिनीनी निश्राए वस्त्र लेवानो विधि अने आचार्यादि न होय त्यारे शय्यातरादिनी निश्राए वस्त्र लेवानो विधि आदि ४१८९-४२३४ त्रिकृत्स्नप्रकृत सूत्र १३ – १४ १३ निर्ग्रन्थविषयक त्रिकृत्नसूत्र पहेल वहेली दीक्षा लेनार निर्मन्थने त्रण जोड रजोहरण गोच्छक अने प्रतिग्रहरूप मध्यम जघन्य उत्कृष्ट उपधि लइने दीक्षा लेवी कल्पे. परंतु ते दीक्षा लेनार पूर्वे दीक्षा लीवेलो होय तो ते नवा उपधिने लइने प्रब्रजित न थइ शके किन्तु पासे होय ते लइने ज प्रत्रजित थइ शके For Private & Personal Use Only ३७ पत्र ११२८-३६ ११२८-२९ ११२९ ११२९-३० ११३०-३१ ११३१-३६ ११३७-४८ ११३७ www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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